लक्ष्मण के भीतर भी अहंकार का अंश था|’रावण का ज्ञानदान’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए | pls give correct answers
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Explanation:
रामायण में भगवान श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध को सत्य व असत्य का संघर्ष माना जाता है। इसमें रावण की पराजय हुई लेकिन उसने मरते समय लक्ष्मण को व्यवहार और नीति की अनेक बातें बताईं।
रावण ने अधर्म और पाप की राह पर चलना स्वीकार किया लेकिन वह अत्यंत विद्वान और पराक्रमी भी था। उसकी कूटनीति और आतंक से उस जमाने के बड़े-बड़े शासक कांपते थे।
श्रीराम ने स्वयं लक्ष्मण से कहा था कि वे रावण से राजनीति और संसार से जुड़े उसके अनुभव सुनें। लक्ष्मण ने आज्ञा का पालन किया और रावण के सिरहाने की ओर खड़े हो गए। ...परंतु रावण ने कुछ नहीं कहा।
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तब श्रीराम ने उन्हें कहा कि वे रावण के पैरों की ओर खड़े हों, क्योंकि उन्हें रावण से ज्ञान प्राप्त करना है। जिससे ज्ञान प्राप्त करना हो उसके पैरों की ओर स्थान ग्रहण करना चाहिए। लक्ष्मण ने ऐसा ही किया। उस समय रावण ने उन्हें जीवन की 3 प्रमुख बातें बताईं।
1- रावण ने कहा था कि शुभ कार्य के लिए अधिक इंतजार मत करो। उसे शीघ्र संपूर्ण करो, क्योंकि पता नहीं कब जीवन की डोर टूट जाए। रावण के कई सपने थे लेकिन वह आलस्य और किसी अन्य दिन की प्रतीक्षा में उन्हें टालता रहा। वे सपने अपूर्ण ही रह गए।
2- अपने प्रतिद्वंद्वी या शत्रु को कभी कमजोर मत समझो। रावण ने वानर-भालुओं की सेना और 2 तपस्वियों (श्रीराम-लक्ष्मण) को कमजोर समझने की भूल की थी, जो उसके लिए काल साबित हुई।
3- अगर अपने जीवन का कोई रहस्य हो तो उसे यथासंभव गुप्त ही रखना चाहिए। अगर वह रहस्य प्रकट हो जाता है तो उसका जीवन पर बुरा प्रभाव हो सकता है। रावण की नाभि में अमृतकुंड का रहस्य खुलने के बाद ही उसकी मृत्यु हुई थी।
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