Hindi, asked by abhishekrozaria, 7 months ago

लक्ष्मण में जटायु को क्या समझा?​

Answers

Answered by ANJALIBHARGAVA15
0

Explanation:

रामायण का जटायु प्रसंग !!!!!! प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए थे- 'गरुड़' और 'अरुण'। अरुण सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। रामायण के अनुसार : - जटायु पंचवटी में आकर रहने लगे। एक दिन आखेट के समय राजा दशरथ से जटायु का परिचय हुआ और ये महाराज के अभिन्न मित्र बन गये। वनवास के समय जब भगवान राम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब जटायु से उनका परिचय हुआ। भगवान श्रीराम अपने पिता के मित्र जटायु का सम्मान अपने पिता के समान ही करते थे। रावण द्वारा सीता हरण : - राम अपनी पत्नी सीता के कहने पर कपट-मृग मारीच को मारने के लिये गये और लक्ष्मण भी सीता के कटुवाक्य से प्रभावित होकर राम को खोजने के लिये निकल पड़े। दोनों भाइयों के चले जाने के बाद आश्रम को सूना देखकर लंका के राक्षस राजा रावण ने सीता का हरण कर लिया और बलपूर्वक उन्हें रथ में बैठाकर आकाश मार्ग से लंका की ओर चल दिया। सीताजी ने रावण की पकड़ से छूटने का पूरा प्रयत्न करने किया, किंतु असफल रहने पर करुण विलाप करने लगीं। उनके विलाप को सुनकर जटायु ने रावण को ललकारा। ग़ृद्धराज जटायु का रावण से भयंकर संग्राम हुआ, लेकिन अन्त में रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े और रावण सीता जी को लेकर लंका की ओर चला गया। श्री राम की जटायु भेंट - जब राम लक्ष्मण के साथ सीता की खोज करने के लिये खर-दूषण के जनस्थान की ओर चले तो मार्ग में उन्होंने विशाल पर्वताकार शरीर वाले जटायु को देखा। उसे देख कर लक्ष्मण ने राम से कहा- "भैया! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इसी जटायु ने सीता माता को खा डाला है। मैं अभी इसे यमलोक भेजता हूँ।" ऐसा कह कर अत्यन्त क्रोधित लक्ष्मण ने अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और जटायु को मारने के लिये आगे बढ़े। राम को अपनी ओर आते देख जटायु बोला- "आयुष्मान्! अच्छा हुआ कि तुम आ गये। सीता को लंका का राजा रावण हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले गया है और उसी ने मेरे पंखों को काट कर मुझे बुरी तरह से घायल कर दिया है। सीता की पुकार सुन कर मैंनें उसकी सहायता के लिये रावण से युद्ध भी किया। ये मेरे द्वारा तोड़े हुए रावण के धनुष उसके बाण हैं। इधर उसके विमान का टूटा हुआ भाग भी पड़ा है। यह रावण का सारथि भी मरा हुआ पड़ा है। परन्तु उस महाबली राक्षस ने मुझे मार-मार कर मेरी यह दशा कर दी। वह रावण विश्रवा का पुत्र और कुबेर का भाई है। मैंने तुम्हारे दर्शनों के लिये ही अब तक अपने प्राणों को रोक रखा था। अब मुझे अन्तिम विदा दो।" जटायु मृत्यु - भगवान श्रीराम के नेत्र भर आये। उन्होंने जटायु से कहा- "तात! मैं आपके शरीर को अजर-अमर तथा स्वस्थ कर देता हूँ, आप अभी संसार में रहें।" जटायु बोले- "श्रीराम! मृत्यु के समय तुम्हारा नाम मुख से निकल जाने पर अधम प्राणी भी मुक्त हो जाता है। आज तो साक्षात तुम स्वयं मेरे पास हो। अब मेरे जीवित रहने से कोई लाभ नहीं है।" भगवान श्रीराम ने जटायु के शरीर को अपनी गोद में रख लिया। उन्होंने पक्षिराज के शरीर की धूल को अपनी जटाओं से साफ़ किया। जटायु ने उनके मुख-कमल का दर्शन करते हुए उनकी गोद में अपना शरीर छोड़ दिया। जटायु दाह संस्कार - जटायु के प्राणहीन रक्तरंजित शरीर को देख कर राम अत्यन्त दुःखी हुए और लक्ष्मण से बोले- "भैया! मैं कितना अभागा हूँ। राज्य छिन गया, घर से निर्वासित हुआ, पिता का स्वर्गवास हो गया, सीता का अपहरण हुआ और आज पिता के मित्र जटायु का भी मेरे कारण निधन हुआ। मेरे ही कारण इन्होंने अपने शरीर की बलि चढ़ा दी। इनकी मृत्यु का मुझे बड़ा दुःख है। तुम जा कर लकड़ियाँ एकत्रित करो। ये मेरे पिता तुल्य थे, इसलिये मैं अपने हाथों से इनका दाह संस्कार करूँगा।" राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण ने लकड़ियाँ एकत्रित कीं। दोनों ने मिल कर चिता का निर्माण किया। राम ने पत्थरों को रगड़ कर अग्नि निकाली। फिर द्विज जटायु के शरीर को चिता पर रख कर बोले- "हे पूज्य गृद्धराज! जिस लोक में यज्ञ एवं अग्निहोत्र करने वाले, समरांगण में लड़ कर प्राण देने वाले और धर्मात्मा व्यक्ति जाते हैं, उसी लोक को आप प्रस्थान करें। आपकी कीर्ति इस संसार में सदैव बनी रहेगी।" यह कह कर उन्होंने चिता में अग्नि प्रज्वलित कर दी। थोड़ी ही देर में जटायु का नश्वर शरीर पंचभूतों में मिल गया। इसके पश्चात् दोनों भाइयों ने गोदावरी के तट पर जाकर दिवंगत जटायु को जलांजलि दी।

Similar questions