लक्ष्य और पढ़ाई का बढ़ता दबाव पर निबंध
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शिक्षा जीवन में सबसे अहम है। हर माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं। हर व्यक्ति अपने बच्चे को प्रथम आने की उम्मीद लगाए स्कूल भेजता है। अव्वल आने की मांग बच्चों को प्रतियोगिता के जाल में फंसा देती है। बच्चे सफल हुए तो वाह-वाह! असफलता के लिए तो कोई जगह ही नहीं है यहां; यही तनाव का मुख्य कारण है। बच्चा खेल में आनंद नहीं, जीत तलाशने लगता है। सौ प्रतिशत का स्कोर कब बच्चों से बचपन छीन लेता है, हम समझ ही नहीं पाते। बच्चे मानसिक तनाव से अवसाद की ओर बढ़ने लगते हैं। आज बच्चों के तनाव का स्तर (स्ट्रैस लेवेल) इतना बढ़ गया है कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न होने लगी है।
ऐसे में, हमें बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ उनके तनाव मुक्त बचपन पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। बच्चों में पढ़ाई का दबाव कम करने के लिए दिल्ली सरकार की पहल है ’हैप्पीनेस क्लास’, जिसकी चर्चा अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी को दिल्ली के सरकारी स्कूल तक ले आई। बच्चों को तनाव मुक्त करने का यह तरीका आने वाले समय में शायद शिक्षा प्रणाली की नई इबारत लिखेगा।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 से 17 वर्ष की आयु वर्ग के स्कूली बच्चे उच्च तनाव के शिकार हो रहे हैं जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बच्चों पर ज्यादा अंक लाने का दबाव नहीं डालना चाहिए। सही तैयारी के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्होंने जितना तैयार किया है उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाए। इसमें अभिभावकों का अहम रोल होता है। भाग-दौड़ वाली जीवनशैली, बच्चों पर भारी बस्ते का बढ़ता बोझ शारीरिक रूप से बीमार करने वाला है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे के भारी भरकम बस्ते उनके कंधों, कमर और सिर दर्द के भी कारण बनते हैं। एक कदम आगे, सर्वोत्तम बनने की होड़ में लगातार बढ़ते पारिवारिक दबाव से तंग आकर बच्चे आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने तक पहुंच जाते हैं। उन्हें यह कचोटने लगता है कि वे अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे। बच्चों का यह नकारात्मक दृष्टिकोण हमारी शिक्षा व्यवस्था पर एक प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है साथ ही सामाजिक ताने बाने के मूल्यांकन पर भी।
इतिहास गवाह है कि दुनिया का कोई भी साधारण अंक-पत्र किसी बालक की असाधारण प्रतिभा का आकलन नहीं कर पाया है। भारतीय इतिहास में दर्ज लम्बी सूची है जिनमें चन्द्रगुप्त, अशोक, अकबर से लेकर महात्मा गांधी एवं वर्तमान युग में ऐसे हजारों उदाहरण हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में महान कार्य किए हैं, भले ही वे कक्षा में अच्छा प्रदर्शन न कर पाए हों या शिक्षा ही न हासिल कर पाए हों। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में महारथी होता है। जरूरत तो सिर्फ उस शिक्षक की होती है जो बच्चे की रूचि एवं प्रतिभा को पहचान कर सही दिशा दे।
लगातार बढ़ता तानव तथा मानसिक दबाव बच्चों में निराशा का भाव पैदा करता है। ऐसे में बच्चों के मन में डर जन्म ले लेता है जो अकसर बडे होने पर भी साथ नहीं छोड़ता। प्राथमिक कक्षा से ही बच्चे पर कक्षा में टॉप आने का दबाव यकीनन कामयाबी दिलाता है लेकिन हमेशा नम्बर वन रहना बच्चे को बचपन खुल कर जीने नहीं देता। पता ही नहीं चलता कब बच्चे के मन में यह घर कर जाता है कि जीवन में केवल अंक ही जरूरी है और कुछ नहीं।
बच्चों के स्वस्थ भविष्य के लिए माता-पिता को यह जानना आवश्यक है कि बच्चे की क्षमता क्या है? वह खुद से क्या करना चाहता है? वह किस क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है? भले ही वह माता-पिता के सपनों के क्षेत्र से अलग हो। बच्चों के अंकों से उनकी क्षमता का आकलन करना ठीक नहीं। हमें अपने नज़रिये में बदलाव की आवश्यकता है तभी देश का हर बच्चा अपनी प्रतिभा का सही उपयोग कर पाएगा। बच्चे को आइन्सटाइन बनाने के लिए पहले अपने नज़रिये को आइन्सटाइन की मां के समकक्ष लाना होगा। बच्चे की प्रतिभा और रूचि जानना अति आवश्यक है। तभी हम स्वस्थ एवं खुशहाल भारत का निर्माण कर पाएंगे।
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बच्चो पर पाड़ाई का दबाव न बैडने देना अकेले न छोड़ना उन्के साथ समय बिताना हर माता पिता के लिये आवश्यक है यदि बचचा पाड़ाई मे कमजोर है तो माता-पिता को बच्चो को यह विश्वास दिलाना की आवश्यक्ता है की पाड़ाई के अलावा बहुत क्षेत्र है जिन्मे वह अचछा कर सकता है अपना बेहतर भविष्य बना सक्ता है वोद्यथिर्तियों पर परीक्षा का अनावश्यक दबाव की वजह से क्षात्रो पर पे तनाव बढ़ता है।।।
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