Math, asked by parvinderyadav2924, 11 months ago

लक्ष्य तक पहुँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा।
लक्ष्य तक अति दूर दुर्गम मार्ग भी हम जानते हैं,
किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं,
जब प्रगति का नाम जीवन, यह अकाल विराम कैसा ।। लक्ष्य तक_______ ।
धनुष से जो छूटता है बाण कब मग में ठहरता
देखते ही देखते वह लक्ष्य को ही वेध करता
लक्ष्य प्रेरित बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसा।। लक्ष्य तक_______ ।
बस ही है पथिक जो पथ पर निरन्तर अग्रसर हो,
हो सदा गतिशील जिसका लक्ष्य प्रतिक्षण निकटतर हो।
हार बैठे जो डगर में पथिक उसका नाम कैसा ।। लक्ष्य तक_______ ।
बाल रवि की स्वर्ण किरणें निमिष में भू पर पहुँचतीं,
कालिमा का नाश करतीं, ज्योति जगमग जगत धरती
ज्योति के हम पुंज फिर हमको अमा से भीति कैसा ।। लक्ष्य तक_______ ।
आज तो अति ही निकट है देख लो वह लक्ष्य अपना,
पग बदाते ही चले बस शीघ्र होगा सत्य सपन।
धर्म-पथ के पथिक को फिर देव दक्षिण वाम कैसा ।। लक्ष्य तक_______ ।

Answers

Answered by sonuvuce
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पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं।

व्याख्या निम्नलिखित है:

किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं, इसका तात्पर्य है कि कवि के अनुसार पथिक को यह ज्ञात है कि उसका लक्ष्य बहुत दूर है और लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग भी अत्यधिक कठिन है परन्तु पथिक को केवल एक उसका लक्ष्य ही दिख रहा है उसे अन्य किसी बात की चिंता नहीं है| वह उस लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर अग्रसर है और इस धुन में उसे मार्ग में आने वाली कठिनाइयाँ उसे कठिनाइयाँ नहीं लगतीं| वास्तव में ये कठिनाइयाँ भी उसके मनोबल को और बढाती हैं और उसे निरंतर लक्ष्य को पाने के लिए प्रेरित करती हैं| कंटक अर्थात् कांटे कठिनाइयों के द्योतक हैं और सुमन अर्थात् फूल सुगमता के, इसी कारण मार्ग में पड़े काँटों को पथिक कांटे न मानकर फूल मानता है|

आशा है यह उत्तर आपके लिए उपयोगी होगा|

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