लकड़हारा इसलिए मुँह से अपने हाथ में फूंक मारा करता था
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लकड़हारे ने जवाब दिया, "सर्दी बहुत है। हाथ ठिठुरे जाते हैं। मैं मुँह से फूंककर उन्हें ज़रा गर्मा लेता हूँ; फिर ठिठुरने लगते हैं, फिर फूंक लेता हूँ।" । ... इसलिए आग बार-बार ठंडी हो जाती तो लकड़हारा मुँह से फूंककर तेज़ कर देता था।
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