Lobh paap ko mool h lobh mitavat maan lobh kbhi nhi kijiye yame nark nidan ki vyakhya
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लोभ पाप को मूल है, लोभ मिटावत मान।
लोभ कभी नहिं कीजिए, या मैं नरक निदान।।
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यह पंक्तियां कभी भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित ‘अंधेरनगरी’ नामक पाठ से ली गई हैं।
भारतेंदु जी कहते हैं कि लालच करना हर बुराई की जड़ है, लालच करने के कारण मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह स्वयं के लिए विपत्ति का निमंत्रण देता है। लालच करने से मनुष्य का मान सम्मान कम होता है। इसलिए मनुष्य को कभी भी लालच नहीं करना चाहिए नहीं तो उसका जीवन नर्क से भी बदतर हो सकता है।
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