Hindi, asked by rajbalachechi, 5 months ago

Loga m ajadi ki jagruta kaise aai​

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Answered by gulshankumarwadhwa76
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write clearly ...

Your sentence seems to be too complicated..

Answered by sirkamleshkumar70
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15 अगस्‍त, 1947 को आधी रात के वक्‍त, जब पूरा देश गहरी नींद में सोया हुआ था, वर्षों की गुलामी के घने कुहरे को भेदती हुई रोशनी की एक लकीर दाखिल हुई और लंबी दासता के बाद देश ने एक आजाद सुबह में आँखें खोली। ब्रिटिश हुकूमत की 200 साल की गुलामी से मिली यह आजादी अथक संघर्षों, त्‍याग और बलिदान का परिणाम थी। आजादी की यह फसल हजारों देशभक्‍तों के खून से सींची गई थी ।

पूरे एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी दो घटनाएँ, जिसमें एक उपलब्धि और दूसरी दुर्घटना थी, एक साथ घटित हुईं। एक देश गुलामी से आजाद हुआ और एक विशाल भूभाग पर विभाजन की लकीर खींच दी गई। यह आजादी अकेली नहीं आई थी। अपने साथ लाई थी, बँटवारे का दर्द और ऐसे गहरे घाव, जो आने वाली कई सदियों तक भरे नहीं जा सकते थे। अँग्रेज हुक्‍मरान जाते-जाते देश की जमीन को दो टुकड़ों में बाँट गए। यह बँटवारा सिर्फ जमीनों का ही नहीं था, यह बँटवारा था दिलों का, स्‍नेह का, अपनों का, भारत की गौरवमयी साझा सांस्‍कृतिक विरासत का। यह बँटवारा था, सिंधु-घाटी की सभ्‍यता, हड़प्‍पा-मोहन जोदड़ों का। यह बँटवारा उत्‍तर में खड़े हिमालय का था। उन नदियों का था, जो दोनों देशों की सीमाओं में बह रही थीं। उन हवाओं का था, जो इस देश की जमीन से बहकर उस देश की जमीन तक जाती थीं ।

यह बँटवारा था, इकबाल और मीर का, टैगोर और नजरुल इस्‍लाम का। कला, साहित्‍य, संगीत हर चीज को फिरंगियों ने अपनी तेज कटार स ेदो टुकड़ों में बाँट दिया था और हम निरीह सिर्फ उसकी तड़प को महसूस कर पा रहे थे ।

यह इनसानी रिश्‍तों, अपनों और सबसे बढ़कर लोगों के दिलों का बँटवारा था। रातोरात लोग अपने घर, जमीन, खेत-खलिहान सबकुछ छोड़कर एक अनजान धरती के लिए निकल पड़े, जो अँग्रेजों के कानूनी कागजों के मुताबिक उनका नया देश था। आम आदमी के लिए इस आजादी का अर्थ समझना थोड़ा मुश्किल था, जो उनसे उनकी जड़-जमीन सबकुछ छीने ले रही थी ।

गुलाम भारत में स्‍वतंत्रता का संघर्ष तो खून से लथपथ था ही, आजादी उससे ज्‍यादा खून में नहाई हुई थी। लँगोटी और लाठी वाला वह संत आजादी के नजदीक आने के साथ सत्‍ता की लड़ाई के पूरे परिदृश्‍य से गायब हो गया था। वह ऐतिहासिक फोटो, जिसमें मुहम्‍मद अली जिन्‍ना और जवाहरलाल नेहरू लॉर्ड माउंटबेटेन के साथ बैठे हैं, जब भारत और पाकिस्‍तान के बँटवारे पर स्‍वीकृति की आखिरी मोहर लगी थी, उस तस्‍वीर में वह लाठीधारी नदारद है। गाँधी उस समय इन सबसे क्षुब्‍ध अपने आश्रम में बैठे सूत कात रहे थे। उन्‍हें दु:ख था उस आजादी के लिए, जो अपने भाइयों के विभाजन और खून से लिखी जाने वाली थी । ND ND

हिंदुस्‍तान को अपनी उपनिवेशी हैसियत का अहसास तो उसी दिन हो गया था, जब 3 सितंबर, 1939 को ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि हिंदुस्‍तान और जर्मनी के बीच युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। बड़े पैमाने पर हिंदुस्‍तानियों को विश्‍व-युद्ध की आग में झोंका जा रहा था। इंग्‍लैंड और यूरोप की जेलें हिंदुस्‍तानी कैदियों से भर रही थीं। सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में शक्तिशाली शासक मुल्‍कों ने अपने उपनिवेशों और वहाँ के नागरिकों के साथ ऐसा ही नृशंस व्‍यवहार किया और उन्‍हें मुक्‍त करने के पहले वहाँ किसी-न-किसी रूप में घृणा और वैमनस्‍य के बीज बोए थे, बँटवारे की जमीन तैयार की थी और ऐसे घाव छोड़ गए थे, जिन्‍हें भरना नामुमकिन था।

कुछ मुट्ठीभर अँग्रेजों ने लाखों हिंदुस्‍तानियों पर 200 सालों तक निर्द्वंद्व शासन किया, और यह ‘बाँटो और राज कर ो ’ की फिरंगी चाल के कारण ही संभव हो सका। यह सत्‍ताधारियों के हित में था कि लोग कुछ बड़े सवालों और अपने असल दुश्‍मन फिरंगियों से न लड़कर आपस में ही संघर्ष करते रहें। फिरंगी इतिहास को पलट रहे थे, सौहार्द्र, समता और सहिष्‍णुता की सांस्‍कृतिक विरासत को धार्मिक मनमुटाव और संघर्ष का अखाड़ा बना रहे थे। यह गोरे शासकों की शातिर चालबाजियों में से एक था, जिसे विभाजन की शक्‍ल में वे हमारी आने वाली पीढि़यों के लिए छोड़ गए ।

एक स्‍वतंत्र गणतंत्र, आत्‍मनिर्भरता और खुदमुख्‍तारी के 60 वर्षों के गौरवमयी इतिहास पर खून के छींटे अब भी बदस्‍तूर कायम हैं, कुछ कराहें हैं, जिनकी आवाज अब भी इस देश की नींद में दाखिल होती हैं।

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