Hindi, asked by Gavin6980, 1 year ago

Lohri Hindi Essay लोहड़ी 13 January Indian Festival

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Answered by rupali2972
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मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषत: पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है ।

मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं । इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है । मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है ।

पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है । लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं । लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है

लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं । आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं । जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है ।

प्राय: घर में नाव वधू या और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है । लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था । यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया ।Lohri festival, को सिन्धी लोग लाल लोई Lal Loi के नाम से मनाते हैं। भारत में यह कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरयाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में भी धूम धाम से मनाया जाता है परन्तु पंजाब में इसको सबसे ज्यादा मान्यता दिया जाता है।लोहड़ी सर्दियों के मौसम का अंत दर्शाता है। इसलिए यह एक मौसमी त्यौहार है जो शीत ऋतू के जाने पर मकर संक्रांति के समय मनाया जाता है। यह किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार और दिन होता है। लोहड़ी का त्यौहार मनाने वाले और इससे जुड़े हुए लोगों लोहड़ी के त्यौहार को दुल्ला भट्टी की लोक कथा से भी जोड़ते हैं। यह विश्वास किया जाता है कि अकबर के काल में पिंडी भटियन का एक राजा था दुल्ला भट्टी Dulla Bhatti वह एक लुटेरा था पर उसने बहुत सारी लड़कियों को गुलाम बाज़ार या दास बाज़ार से अपहरण किये हुए लोगों से बचाया था जो की एक महान बात थी।

इसके कारण लोहड़ी के त्यौहार में लोग दुल्ला भट्टी पर आभार व्यक्त करते हैं और उनका नाम पंजाब की लोक कथाओं में व्यापक रूप से वर्णित है। ज्यादातर लोहड़ी के गीत दुल्ला भट्टी के अच्छे कर्मों में आधारित है।

Answered by Anonymous
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वैसे तो लोहड़ी का त्यौहार सिख्खों का होता है। पंजाब में लोहरी बहुत धूम धाम से मनाई जाती है लेकिन ये त्यौहार सिर्फ पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बडी धूम धाम से मनाया जाता है। तमिल हिंदू मकर संक्रांति के दिन पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। lohri का त्यौहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है ।लोहड़ी पंजाबियों के लिए खास महत्व रखती है।छोटे बच्चे लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही लोहरी के गीत गाते हैं और साथ ही लोहरी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लगते हैं । लोहरी वाले दिन शाम को आग जलाई जाती है ।

अग्नि के चारों ओर लोग चक्कर लगाते हैं और नाचते-गाते हैं। साथ ही आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति भी देते हैं। लोग आग के चारों ओर बैठते हैं और आग सेंकते हैं। व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाते हैं। जिस घर में नई शादी या बच्चा हुआ हो और जिसकी शादी के बाद पहली लोहरी या बच्चे की पहली लोहड़ी होती है उन्हें विशेष तौर पर बधाई देते हैं।

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहते थे। तिलोडी शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मिलकर बना है। जो अब बदलकर लोहरी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।

एक समय में दो अनाथ लड़कियां थीं। जिनका नाम सुंदरी एवं मुंदरी था। उनकी विधिवत शादी न करके उनका चाचा उन्हें एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में एक दुल्ला भट्टी नाम का डाकू हुआ है । उसने सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कर दीं।

दुल्ला भट्टी ने इस मुसीबत की घड़ी में लड़कियों की मदद की। दुल्ला भट्टी ने लड़के वालों को मनाया और एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवा दिया। उन दोनों का कन्यादान भी दुल्ले ने खुद ही किया। ये भी कहा जाता है कि शगुन के रूप में दुल्ले ने उनको शक्कर दी थी। दुल्ले ने उन लड़कियों को जब विदा किया तब उनकी झोली में एक सेर शक्कर ड़ाली। दुल्ला भट्टी ने ड़ाकू हो कर भी निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। साथ ही ये भी कहते हैं कि यह पर्व संत कबीर की पत्नी लोई की याद में मनाते हैं। इसीलिए यह पर्व को लोई भी कहते हैं। इस प्रकार पूरे उत्तर भारत में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।

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