Lok ishwar ko pane keliye kya kya kreyayen karte hei
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एनबीटी न्यूज, इंदिरापुरम
शक्तिखंड-3 शिव मंदिर में बुधवार को कार्तिक कथा में पंडित कुलदीप शर्मा ने परमात्मा को प्राप्त करने का तरीका बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे उत्तम और सरल उपाय प्रेम ही है। प्रेम भक्ति का प्राण भी होता है। प्रेम के बिना इंसान चाहे कितना ही जप, तप, दान कर ले, ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। दुनिया का कोई भी साधन प्रेम के बिना जीव को ईश्वर का साक्षात नहीं करा सकता है।
पंडित ने कार्तिक कथा में तुलसी पूजन का महत्व बताया। इसके बाद प्रभु को पाने के लिए प्रेम की महत्ता बताई। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि भगवान के प्रति प्रेम ही भक्ति का सबसे सुगम मार्ग होता है। एक कथा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि देवता अपने दुखों को लेकर भगवान आशुतोष से मिलने के लिए पहुंचे और अपनी समस्याएं बताईं। तब उन्होंने कहा कि इन समस्याओं का समाधान केवल प्रभु श्रीराम ही कर सकते हैं। तब देवताओं ने कहा कि उनको प्राप्त करने के लिए तो हमें वैकुंठ लोक और क्षीर सिंधु में जाना पड़ेगा। क्योंकि भगवान श्रीराम वहीं पर निवास करते हैं। लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि उन्हें पाने के लिए किसी लोक में जाने की जरूरत नहीं है। सभी देवतागण प्रेमभाव से यहीं प्रार्थना करें तो उनका साक्षात किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि फिर वहीं पर प्रभु श्रीराम ने अपना साक्षात कराया। पंडित ने कहा कि प्रेम में ही परमात्मा को प्राप्त करने की असीम शक्ति होती है। प्रेम के अभाव में सारी योग्यताएं धरी रह जाएगी। गुरु नानक ने भी कहा है कि प्रेम के बिना परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। संत कबीरदास ने भी ढाई अक्षर प्रेम को ही ज्ञान की पराकाष्ठा माना है। उन्होंने कहा कि बिना प्रेम के शस्त्रज्ञान बोझा ढोने के समान होता है।
शबरी के प्रेम से भावुक हो गए श्रद्धालू
पड़ित कुलदीप शर्मा ने बताया कि शबरी, मीरा, निषाद, गोप-गोपी, वानर और अन्य वनवासियों ने प्रेम से ही ईश्वर को पाया। उन्होंने कहा कि शबरी के प्रेम के कारण ही प्रभु श्रीराम उनकी कुटिया में आए थे। अचानक भगवान को आता देखकर शबरी घबरा गई। क्योंकि उसकी कुटिया में प्रभु को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं था। वह चिंता में थी कि प्रभु का स्वागत कैसे करूं, लेकिन शबरी के प्रेम ने भगवान की भक्ति का रहस्य खोल कर रख दिया। प्रेम के वशीभूत होकर प्रभु श्रीराम उनके झूठे फलाहार को भी खां गए। उन्होंने संसार के सभी रसों से ऊपर रखकर शबरी के फलाहार के रस को सुरस यानि उपरति की संज्ञा दी। यानि दुनिया में सुरस से बड़ा कोई रस नहीं है। ऐसे में भगवान श्रीराम अपने भक्त के प्रेम बंधन में बंध गए। प्रभु को शबरी के प्रेम में इतना आनंद आया कि सभी जगहों पर शबरी के फलाहार और उसके रस का जिक्र किया। कथा के उपरांत मंदिर में आरती हुई। इसके बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद का वितरण किया गया।
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