loktantra ke koi 5 haniya likhiye
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१). हम क्वोरा में लोकतंत्र, लोकतंत्र ही तो खेल रहे हैं। अगर लोकतंत्र नहीं होता तो क्वोरा भी नहीं होता (हां, शायद होता, पर यह ‘कोरा’ होता)। अतः मुझे सवाल में ‘दोष’ शब्द का स्तेमाल अतिरेक पू्र्ण लगा। कोई भी प्रद्धति पूर्ण रूप से खामी मुक्त नहीं होती है, अतः लोकतांत्रिक शासन पद्धति भी पूर्ण रूप से खामी रहित नहीं है। फिर भी पहले तो यही कहुंगा कि यह शासन व्यवस्था, अन्य उपलब्ध शासन व्यवस्थाओं में सर्वाधिक स्वाभाविक व मानव स्वभाव के करीब है, व सबसे श्रेष्ठ है। खामियां भी प्रद्धति में नहीं, हमारी अपनी कमजोरियों की वजह से है (अगर हम बारीश में रैनकोट अथवा छाता ना लें और भिगने का दोष बारीश पर लगाएं तो यह सही नहीं होगा)। फिर इन खामियों को दूर करने की क्षमता भी इसी व्यवस्था में ही है।
२). भारत के संदर्भ में : हमें ऐसा जरूर प्रतित होता है कि लोकतंत्र में कार्य संपादन की गति धीमी होती है, वोट की राजनीति की मजबुरी की वजह से राजनेताओं में बदलाव के प्रति अरुचि रहती है व यथास्थितिवाद/ तदर्थवाद हावी रहता है। (इनकी वजह है बार बार के चुनाव, सामाजिक आर्थिक विषमता, मतदाता में स्वतंत्र चिंतन का अभाव जिस वजह से वोट बैंक की राजनीति का फलना फुलना, आदि। उम्मीद है सुधार होगा)।
३). कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं। पर इनसे निपटने की सामर्थ्य भी लोक-तंत्र में ही है।
४). लोकतंत्र में व्यवस्था संचालन एक सिस्टम के तहत होता है। व खासियत यह है कि सिस्टम पर नजर/ नियंत्रण करने की उत्तम व्यवस्था भी है, संस्थाओं के रूप में। और सबसे ऊपर है ‘जन(ता)’ जिसे इन सब को नियंत्रित करने का अधिकार प्राप्त है (मानव स्वभाव है कि वह शासन करना चाहता है, शासित नहीं होना चाहता यह सुविधा लोकतंत्र में ही संभव है)।
५). दोष : चुंकि लोकतंत्र आमजन की सामुहिक चेतना से संचालित होता है, अतः इसमें वे सभी दोष हैं जो मानव में है। अतः जो में वे सभी कमियां है उसके लिए तंत्र जिम्मेदार नहीं है। तो मेंरे हिसाब से स्थति तनावपूर्ण जरूर है, पर नियंत्रण में है। लोकतंत्र में सरकार चलाना एक बहुत बड़े संयुक्त परिवार के संचालन जैसा है। हम अपने-अपने घरों में देख सकते हैं। सभी के मुंह से यही निकलेगा “हम बदलेंगें, युग बदलेगा”।
1.लोकतंत्र की नींव में से एक यह धारणा है कि सभी मत बराबर हैं। पर, यह सिर्फ सिद्धांतीक है- लेकिन वास्तव में यह शायद ही कभी सही होता है। हम यह मान लेते है कि सभी राय एक समान हैं, जो विश्वास की एक बड़ी छलांग है, क्योंकि हम शिक्षित और अज्ञानी, और कानून पालन करने वाले नागरिकों और कानून तोड़ने वालों की राय पर समान मूल्य डाल रहे हैं।
यहां तक कि यदि आपको लगता है कि सभी लोग बराबर बनाये गये हैं, तो यह स्पष्ट है कि उनके वातावरण बहुत अलग हैं- और उनका जतन, उनका चरित्र भी अलग होता है। यह मानकर कि सभी राय बराबर हैं आप यह भी मान रहे हैं कि ज्यादातर लोग सभी सदगुण और अवगुणो को परखकर, उनकी गंभीरता से खोज करने के बाद ही एक तर्कसंगत, सूचित निर्णय तक पहुंचने में सक्षम हैं।
2.यह संभावना भी एक बहुत ही विशिष्ट प्रकार के भ्रष्टाचार को जन्म देती है: तांत्रिक राजनीति - एक राजनीतिक संगठन जिसमें मालिक वोट के बदले में पुरस्कार निकालते हैं। यह उनके वोट के बदले में किसी को पैसे देने के समान सरल हो सकता है, या किसी को राजनेता के कार्यालय में नौकरी देना जो अपने मालिकों से आदेश लेता है।
3.एक अप्रतिबंधित लोकतंत्र का अर्थ है कि बहुमत अल्पसंख्यक पर निर्णय लेता है। इससे अल्पसंख्यक अपेक्षाकृत शक्तिहीन हो जाता है-और अल्पसंख्याक जितना छोटा होता है, उतनी ही उसकी कम शक्ति होती है। जिसका अर्थ है कि सभी सबसे छोटी अल्पसंख्यक - एक अकेला व्यक्ति - बहुमत के साथ अपने समझौते पर प्रभावी ढंग से निर्भर करता ह