Loktantra mein jativad kyon bata do Karan likhiye
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समाजसेवी ध्यान सिंह ढटवालिया का कहना है कि देश अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गया, लेकिन जाति, धर्म और नस्लभेद जैसे मतभेद कहीं न कहीं समाज को दीमक की तरह चाट रहे हैं। यह सच है कि कई नेता खासकर चुनावों के समय ऐसे मतभेदों को सिक्का चलाते हैं, लेकिन लोकतंत्र के लिए यह बहुत घातक है। नेताओं को समझना होगा कि यह केवल चुनाव जीतने का मसला नहीं है, बल्कि देश के भविष्य का सवाल है।
जाति के आधार पर चुनाव लड़ना सही नहीं
विजय वर्मा मोबाइल विक्रेता का कहना है कि जाति के आधार पर चुनाव लड़ना और लड़वाना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। इससे एक तो सामाजिक रिश्तों में दूरियां पैदा होती हैं, दूसरा समाज में असमानता की भावना भी पैदा होती है। हमारे नेताओं को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे लोगों को इस तरह जाति के नाम पर न बांटे। क्यांेकि हो सकता है उन्हें थोड़े समय के लिए इसका फायदा हो जाए, लेकिन आगे चलकर परिणाम घातक होंगे।