History, asked by agrim28, 13 days ago

long poem of shivaji maharaj

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Answered by vanshika13592
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Answer:  देखो मुल्क मराठों का यह, यहाँ शिवाजी डोला था, मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों पर तोला था, हर पर्वत पर आग लगी थी, हर पर्वत इक शोला था, बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था।वीर शिवाजी ने रक्खी थी लाज हमारी शान की, इस मिट्टी से तिलक करो, यह मिट्टी है बलिदान की।यह है आपका राजपुताना, नाज़ इसे तलवारों पे, इसने अपना जीवन काटा, बरछी तीर कटारों पे, यह प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे, कूद पड़ी थी यहां हजारों पद्मनिया दहकते अंगारों पे।बोल रही है कण- कण में कुर्बानी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो, यह मिट्टी है बलिदान की।शिवाजी के जन्म-उत्सव पर तहेदिल से उन्हें अनंत कुर्बानियों के लिए नमन! ! !

Answered by shounakdash1
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Answer:

साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं 

‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,

नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।

ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,

गजन की ठैल पैल सैल उसलत हैं ।

तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,

थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं ।।

बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,

नाहीं ठहराने राव राने देस देस के ।

नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,

बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥

हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,

भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।

दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,

केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,

रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।

पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,

ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥

दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,

'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।

तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,

त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥

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