CBSE BOARD X, asked by rishavsingla2506207, 28 days ago

lord krishan
भगवान जोगेश्वर की तस्वीर में उनका बायां पैर आगे क्यों होता है ?​

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Answered by Anonymous
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Answer:

ये हिरण्य नदी का वही तट है, जहां पर योगेश्वर कृष्ण ( Yogeshwar Krishna ) ने अपनी लीलाओं को विश्राम देते हुए गौलोक धाम ( Golok Dham Somnath ) को प्रस्थान किया था। अगर इसे सांसारिक शब्दों में कहें तो यहीं पर भगवान कृष्ण ने आखिरी सांस ली थी और उनका यहीं पर अंतिम संस्कार पांडवों ( Pandav ) ने किया था। यहां की अजीब सी खामोशी जीवन के अंतिम सत्य का साक्षात्कार कराती है।

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3228 ई.स. वर्ष पूर्व योगेश्वर कृष्ण ( Lord Krishna ) का अवतरण ( Janmashtami ) हुआ और 3102 ई.स.वर्ष पूर्व उन्होंने इस लोक को छोड़ भी दिया। अंग्रेजी तारीख में 18 फरवरी को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दोपहर दो बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर उन्होंने पृथ्वीलोक को छोड़ दिया।

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जरा कृष्ण को समझ लीजिए 125 साल, छह महीने और छह दिन वह यहां पर रहे। कुरुक्षेत्र का युद्ध उन्होंने 86 वर्ष की उम्र में जिया था। वैसे कहते हैं कि अगर कृष्ण और शकुनि नहीं होते तो शायद कुरुक्षेत्र का युद्ध ही नहीं होता। अधिकारों को पाने और हड़पने की यह लड़ाई कब धर्म और अधर्म की परिभाषा में बदल गई, मालूम ही नहीं चला। दोनों ओर अगर कोई खड़ा था तो अपना-अपना धर्म संभाले हुए। कोई मित्र धर्म की परिभाषा लेकर खड़ा था, तो किसी के पास सांसरिक रिश्तों का धर्म था। कोई हस्तिनापुर के धर्मदंड से बंधा हुआ था तो कोई उस धर्मदंड के खिलाफ खड़ा होकर अपना धर्म पूरा कर रहा था।

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धर्म की इस लड़ाई का खामियाजा भी कृष्ण ने ही भुगता। गांधारी का श्राप लगा और पूरा यदुवंश आपस में लड़कर ही खत्म हो गया। जिस साम्राज्य को खुद कृष्ण ने खड़ा किया था, वह समुद्र के भीतर डूब गया। एक प्रपौत्र जीवित बचा उसे भी हस्तिनापुर में जाकर शरण लेनी पड़ी। स्त्रियां, बच्चे और जीवन सब कुछ कृष्ण की नगरी से हस्तिनापुर चला गया। एक साम्राज्य यूं देखते-देखते ही बिखर गया। वही अर्जुन जिनके बाणों के प्रताप से पूरा कुरुक्षेत्र का युद्ध एकतरफा था, वह भीलों से हार गए और कई महिलाओं को अर्जुन के सामने से ही भील लूटकर ले गए। अर्जुन शस्त्रों के साथ होकर भी शून्य चेतना में खड़े रह गए। आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक समय का शक्तिशाली योद्धा भीलों से हार गया। यह सवाल अर्जुन को वियोग की ओर ले गया, जो संन्यास पर जाकर खत्म हुआ।

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तो क्या कृष्ण यही बता रहे थे अर्जुन को कि आपकी शक्ति भी आपको शून्य में लाकर खड़ी कर देती है। जिस शक्ति ने अहंकार दिया, उसी शक्ति ने अहंकार का मर्दन भी करा दिया। समय कोई भी सवाल अधूरा नहीं छोड़ता है।

प्रभाष क्षेत्र के वेरावल जंगलों में जरा भील के बाण पर कृष्ण का काल सवार होकर आया। अर्जुन द्वारिका आए हुए थे, उन्हें जब इसकी खबर मिली तो वह वेरावल पहुंचे और कृष्ण का अंतिम संस्कार हिरण्य, कपिला और सरस्वती नदी के संगम पर किया, यहीं पर कृष्ण ने अंतिम सांस ली। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि 16 हजार आठ रानियां और 80 पुत्र होने के बाद भी कृष्ण को उनके परिजनों ने मुखाग्नि नहीं दी, बल्कि पांडवों की ओर से अर्जुन ने यह कर्म किया। वैसे मान्यता यही है कि कृष्ण और अर्जुन नारायण-नर के ही अवतार थे, जिन्होंने केदारनाथ और बद्रीनाथ की स्थापना की थी।

खैर, कभी सोमनाथ किनारे बने इस संगम को करीब जाकर देखिए, यहां पर तीनों नदियां अपना प्रवाह भूल गई हैं। हवाओं की सरसराहट भी सुनाई नहीं देती है। कृष्ण के पदचिन्हों के पास एक अजीब सी खामोशी महसूस होती है। जो चंद कदम दूर पर महसूस नहीं होती है। अजीब सा सन्नाटा अपने भीतर समेटे यह जगह इशारा करती है कि नारायण यहां पर शून्य में समाहित हो गए हैं। या ये कहें कि कृष्ण जाते-जाते भी सीख दे गए कि पाने को खुला आसमान है और उसे पाने के बाद क्या शेष है...मृत्यु अशेष है...जिसमें आपके वो लोग भी नहीं होंगे, जिनके लिए आपने पूरी शक्ति और जीवन समर्पित कर दिया। वो ऐश्वर्य और वैभव भी नहीं होगा। अगर कुछ होगा तो यह शून्य सा सन्नाटा जो हजारों साल के बाद भी इस जगह पर बना हुआ है।

तो कभी आइए और इस अशेष सन्नाटे को महसूस कीजिए, जीवन के आखिरी सत्य को महसूस कीजिए।

Answered by ravichandran546
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Lord Krishna, the eighth avatar of God Vishnu is worshiped as a supreme God in Hinduism. Born in northern India (around 3,228 BCE), Lord Krishna's life marks the passing of the Dvapara age and beginning of the Kal yuga (which is also considered as the current age).
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