लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया जबकि श्री घर पर अब गाने में बड़ी उतर करता से गाती है इस कथन से आप क्या सब सहमत हूं
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लेखक का मानना है कि लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है जितना मुग्ध शृंगार के साथ किया है। श्रृंगारपरक गाने वे बहुत उत्कटता से गाती हैं। हम लेखक के इस कथन से केवल आशिक रूप से ही सहमत हैं। लता ने श्रृंगारपरक गाने उत्कटता के साथ अवश्य गाए हैं, पर करुण रस के साथ भी न्याय किया है।
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