लड़ाई के समय चाँद निकल आया था । ऐसा चाँद जिसके प्रकाश से संस्कृत कवियों का दिया हुआ ' क्षयी ' नाम सार्थक होता है । और हवा ऐसी चल रही थी जैसी कि बाणभट्ट की भाषा में ' दंतवीणे पदेशाचार्य ' कहलाती । वजीर सिंह कह रहा था कि कैसे मन - मन भर फांस की भूमि मेरे बूटो से चिपक रही थी जब मैं दौड़ा - दौड़ा सूबेदार के पीछे गया था । शिल्प तत्वों के आधार पर चन्द्रगप्त नाटक की समीक्षा कीजिए ।
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sorry apka question
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samajh mein nahin a Raha
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