लड़कियां क्या है कठपुतलियां हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है
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Answer:
ladkiya katputiliya nhi hai aur unke ma bap ko is cheej pr garv nhi hai ladkiya khud ko etna kabil bnati hai ki wo do parviar ko jod ke rkhti hai aur phir bhi society un pe ungli uthati hai..
ladikyo ke liye sare rok tok hote hai..
aur ladko ke liye nhi
उत्तर :
न ही लड़कियां किसी के हाथ की कठपुतली हैं और न ही उनके माता-पिता को इस बात पर गर्व है।
व्याख्या:
समाज में लड़के लड़कियों में लिंग के आधार पर भेदभाव 180 से चला आ रहा है। समाज में यह गलत धारणा प्रचलित है कि लड़के शारीरिक व मानसिक रूप से लड़कियों से अधिक सक्षम होते हैं। पितृसत्तात्मक समाज ने यह धारणा और मजबूत बनाई है। सामाजिक रीति रिवाज इस प्रकार से बनाए गए कि लड़कियों को घर की चारदीवारी में कैद करके रखा गया, जिनसे उनका शारीरिक व मानसिक विकास लड़कों की उपेक्षा अधिक नहीं हो पाया। परंतु आज का समय बदल रहा है वर्तमान समय में लड़के और लड़कियां दोनों ही सभी क्षेत्रों में कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। चाहे पढ़ाई लिखाई हो या खेलकूद, बिजनेस, विज्ञान या कोई अन्य क्षेत्र लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं है। आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो जाने पर लड़कियां अब अपने फैसले खुद ले बानी में सक्षम है।
इस प्रकार अब से किसी के हाथों की कठपुतली बनकर नहीं रहती हैं। पितृसत्तात्मक समाज की मानवीय बेड़ियों को उन्होंने अपने परिश्रम से तोड़ डाला है। यद्यपि अभी भी कुछ पिछड़े क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां पर लड़कियां लड़कों से कम पर समझी जाती हैं। परंतु जिस गति से लड़कियां सभी क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं वह दिन दूर नहीं जब संसार के प्रत्येक कोने में मनुष्य को लड़का, लड़की, धर्म, जाति, आदि के आधार पर नहीं बल्कि केवल मनुष्य को केवल मनुष्य के रूप में देखा जाएगा।
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