(M) पश्चिम बंगाल में स्थित लौह-इस्पात संयंत्र
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लौह इस्पात के कारखाने
विकास की दृष्टि से देखा जाय तो सबसे पहला कारख़ाना सन् 1874 में कुल्टी नामक स्थान[2] पर 'बाराकर लौह कम्पनी' के नाम से स्थापित किया गया था। जो 1889 में बंगाल लोहा एवं इस्पात कम्पनी के रूप में परिवर्तित हो गया।
1908 में पश्चिम बंगाल की दामोदर नदी घाटी में हीरापुर नामक स्थान पर भारतीय लौह इस्पात कम्पनी स्थापित हुई।
1923 में दक्षिण भारत के मैसूर राज्य[3] के भद्रवती नामक स्थान पर भारत की प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई 'मैसूर आयरन एण्ड स्टील वक्र्स' की स्थापना की गई, जिसको वर्तमान में 'विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील कं. लि.' के नाम से जाना जाता है।
1937 में बर्नपुर में 'स्टील कार्पोरेशन ऑफ़ बंगाल' की स्थापना हुई एवं 1953 में इसकों भी 'इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी' में मिला दिया गया।
विकास की दृष्टि से देखा जाय तो सबसे पहला कारख़ाना सन् 1874 में कुल्टी नामक स्थान[2] पर 'बाराकर लौह कम्पनी' के नाम से स्थापित किया गया था। जो 1889 में बंगाल लोहा एवं इस्पात कम्पनी के रूप में परिवर्तित हो गया।
1908 में पश्चिम बंगाल की दामोदर नदी घाटी में हीरापुर नामक स्थान पर भारतीय लौह इस्पात कम्पनी स्थापित हुई।
1923 में दक्षिण भारत के मैसूर राज्य[3] के भद्रवती नामक स्थान पर भारत की प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई 'मैसूर आयरन एण्ड स्टील वक्र्स' की स्थापना की गई, जिसको वर्तमान में 'विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील कं. लि.' के नाम से जाना जाता है।
1937 में बर्नपुर में 'स्टील कार्पोरेशन ऑफ़ बंगाल' की स्थापना हुई एवं 1953 में इसकों भी 'इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी' में मिला दिया गया।
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