मैं आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूंद मेरे हाथ पर आ पड़ी। मेरे
आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि ओस की बूंद मेरी कलाई पर से सरककर हथेली
पर आ गई। मेरी दृष्टि पड़ते ही वह ठहर गई। थोड़ी देर में मुझे सितार के तारों की-सी झंकार
सुनाई देने लगी। मैंने सोचा कि कोई बजा रहा होगा। चारों ओर देखा। कोई नहीं। फिर अनुभव
हुआ
यह स्वर मेरी हथेली से निकल रहा है। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि बूंद के
दो कण हो गए हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं मानो बोल रहे हों।
Answers
Answered by
3
Answer:
ye koi poem h kya poem lag rahi h
Similar questions