Hindi, asked by NancyAjram8447, 2 days ago

मैं अपने देश का एक नागरिक हूँ और मानता हूँ कि, मैं ही अपना देश हूँ। जैसे मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए हर-एक छोटी- छोटी बात पर
ध्यान देता हूँ , वैसे ही , मैं अपने देश के लाभ और सम्मान के लिए भी छोटी-छोटी बातों तक पर ध्यान दूँ। यह मेरा कर्तव्य है और जैसे मैं अपने
सम्मा न और सा धनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ, यह मेरा अधिकार है । बात यह है कि
मैं और मेरा देश दो अलग चीज़ तो , हैं ही नहीं।हीं मैंने मैं जो कुछ जीवन में अध्ययन और अनुभव से सीखा है, वह यही है कि महत्त्व किसी कार्य की
विशा लता में नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य ही हैं , यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे-से-छोटा कार्य
भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है। हमारे देश को दो बातों की सबसे ज्यादा ज़रुरत है। एक शक्ति-बोध और दूसरा सौंदसौं र्य बोध।

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Answered by rojisakshi053
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Answer:

make me brailist

Explanation:

अपने देश का एक नागरिक हूँ और मानता हूँ कि, मैं ही अपना देश हूँ। जैसे मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए हर-एक छोटी- छोटी बात पर

ध्यान देता हूँ , वैसे ही , मैं अपने देश के लाभ और सम्मान के लिए भी छोटी-छोटी बातों तक पर ध्यान दूँ। यह मेरा कर्तव्य है और जैसे मैं अपने

सम्मा न और सा धनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ, यह मेरा अधिकार है । बात यह है कि

मैं और मेरा देश दो अलग चीज़ तो , हैं ही नहीं।हीं मैंने मैं जो कुछ जीवन में अध्ययन और अनुभव से सीखा है, वह यही है कि महत्त्व किसी कार्य की

विशा लता में नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य ही हैं , यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे-से-छोटा कार्य

भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है। हमारे देश को दो बातों की सबसे ज्यादा ज़रुरत है। एक शक्ति-बोध और दूसरा सौंदसौं र्य बोध।

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