मैं बोल रहा हूँ,जोतीबा फुले! nibandh
please tell
Answers
Answer:
ज्योतिबा फुले पर निबंध | Essay on Jyotiba Phule in Hindi
1. प्रस्तावना:
महाराष्ट्र की भूमि वीरों एवं सन्तों की भूमि रही है । साथ ही यहां पर ऐसे महामानव भी हुए हैं, जिन्होंने अनेक यातनाएं सहकर भी सामाजिक सुधार सम्बन्धी कार्य किये हैं । ऐसे महान् व्यक्तियों में से एक थे-महात्मा ज्योतिबा फूले ।
2. जन्म परिचय:
महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्म 1827 में पूना के एक माली परिवार में हुआ था । समाज के इस पिछड़े एवं दलित समझे जाने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा मानव एवं मानव के बीच होने वाले अन्तर को देखकर अत्यन्त दुखी होते थे । वे एक ऐसे परिवार से थे, जहां पढ़ना-लिखना कोसों दूर की बात थी ।
ज्योतिबा के पिता अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे । घोर सामाजिक विरोधों के बीच भी उन्होंने अपने इस बालक ज्योतिबा को पढ़ाना चाहा । 21 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह अनपढ़ सावित्री बाई से कर दिया गया । यद्यपि सावित्री अनपढ़ थीं, तथापि वह शिक्षा के महत्त्व को समझती थीं । अपने पति के हर सामाजिक कार्य में उनकी सक्रियता इसी बात को प्रदर्शित करती है ।
3. उनके सामाजिक कार्य:
ज्योतिबा यह जानते थे कि देश व समाज की वास्तविक उन्नति तब तक नहीं हो सकती, जब तक देश का बच्चा-बच्चा जाति-पांति के बन्धनों से मुक्त नहीं हो पाता, साथ ही देश की नारियां समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार नहीं पा लेतीं ।
उन्होंने तत्कालीन समय में भारतीय नवयुवकों का आवाहन किया कि वे देश, समाज, संस्कृति को सामाजिक बुराइयों तथा अशिक्षा से मुक्त करें और एक स्वस्थ, सुन्दर सुदृढ़ समाज का निर्माण करें । मनुष्य के लिए समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है । इससे अच्छी ईश्वर सेवा कोई नहीं ।
महाराष्ट्र में सामाजिक सुधार के पिता समझे जाने वाले महात्मा फूले ने आजीवन सामाजिक सुधार हेतु कार्य किया । वे पढ़ने-लिखने को कुलीन लोगों की बपौती नहीं मानते थे । मानव-मानव के बीच का भेद उन्हें असहनीय लगता था । एक बार ज्योतिबा अपने ब्राह्मण मित्र के विवाह में गये हुए थे ।
बारातियों को जब ये पता चला कि वे माली जाति के हैं, तो उन्होंने ज्योतिबा को न केवल अपमानित किया, वरन् बाहर जाने को कहा । ”पढ़ने-लिखने के बाद भी तुम नीच जाति के हो, इसीलिए तुम नीच ही रहोगे”, ऐसा कहकर बुरी तरह अपमानित किया ।
इस अपमान ने उन्हें भीतर तक हिलाकर रख दिया था । उन्हें लगा ऐसे धर्म में रहकर क्या फायदा, जो जाति-पांति के नाम पर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव करता है । ऐसी संकीर्ण विचारधारा ने भारतीय धर्म को पतन की ओर धकेला है । उन्होंने सामाजिक बुराई से लड़ते हुए मनुष्यता के उत्थान का संकल्प ले लिया ।
Explanation:
add me as brainliest