मुंबई पर हुई आतंकवादी हमले को सुनकर दो छात्रों की बातचीत पर संवाद ।
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अजय – नमस्ते विजय, कैसे हो?
विजय – नमस्ते अजय, मैं ठीक हूँ। कुछ चिंतित से दिख रहे हो, क्या बात है?
अजय – मेरी चिंता का कारण है, आज के समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर छपी खबर जिसे शायद तुमने नहीं पढ़ा है।
विजय – आज मेरे घर अखबार नहीं आया है। बताओ तो सही ऐसी क्या खबर है।
अजय – आज पठानकोट पर हुए आतंकी हमले की खबर पढ़कर दुख हुआ। चिंता इस बात की है कि इतना प्रयास करने के बाद भी आतंकवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।
विजय – मित्र, यह कुछ गुमराह युवकों की गलत सोच, लालच और बुरे कार्यों का परिणाम है जिसमें निर्दोषों की जान जाती है और समाज में अशांति फैलती हैं।
अजय – आतंकवादं अब नासूर बन गया है। एक घटना का घाव भरने भी नहीं पाता है कि आतंकी दूसरा घाव दे जाते हैं। पता नहीं आतंकी ऐसा क्यों करते हैं?
विजय – कुछ आतंकी तो धन की लालच में ऐसा करते हैं जबकि कुछ आतंकियों के मस्तिष्क में जाति, धर्म, भाषा आदि का जहर इस तरह भर दिया जाता है कि वे अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं।
अजय – पर यह मानवता के लिए कलंक के समान है। इसे रोका जाना चाहिए।
विजय – यह काम अकेले सरकार से नहीं होगा। इसके लिए युवाओं को भी अपनी सोच बदल लेनी चाहिए।