मैं चेहरे की तरफ देखता हूं। क्या तुम्हें मालूम है मेरे साहित्यिकपुरखे कि तुम्हारा
जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी एहसास
नहीं है? जरा लज्जा और संकोच या झंपनहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि
धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढकसकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे
पर बड़ी बेपरवाही ,बड़ा विश्वास है। फोटोग्राफर ने जब 'रेडी-प्लीज़ कहा होगा तब
परंपरा के अनुसार तुमने मुस्कान लानेकी कोशिश की होगी दर्द को धीरे धीरे
खींचकर उपरनिकाल रहे होंगे कि बीच में क्लिक करके फोटोग्राफर ने बैंक यू कह
दिया होगा। विचित्र है यह अधूरी मुस्कान। यह मुस्कान नहीं, इसमें उपहास है,
व्यंग्य है।
क.पैर की अंगुली बाहर क्यों दिखाई दे रही है?
ख. फोटोग्राफर केरेडी- प्लीज कहने का क्या माव होत
ग.गदयांश में साहित्यिक पुरखे किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
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क. जूता फट गया था इसलिए पैर की अंगुली बाहर दिखाई दे रही है
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