मैं छुटपन में छिपकर पैसे हुए थे सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे रुपयों की कलाधर मधुर फसलें खनकेगी और फूल फल कार में मोटा सेठ बनऊंगा पर बंजर धरती में एक नाम को फूटा वादे बंध्या मिट्टी में एक ऐसा नाम बुला सपने जाने कहां मिटे कबूल हो गए मैं हताश एक बात बता रहा दिनों तक बाल कल्पना के अपना कावेरी बिछाकर मैं अबोध था मैंने गलत बीज बोए थे ममता का रोपा था तृष्णा को सीचा था । 1. कवि ने धरती को बंजर समझा क्योंकि? 2 .छुटपन में कवि द्वारा पैसों का रोपण किस बात का परिचायक है ?3.
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रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी , और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा ! पर ...
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दिए गए गद्य के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित हैं।
1. कवि ने धरती को बंजर समझा क्योंकि?
कवि ने धरती को बंजर समझा क्योंकि कवि ने बचपन में छिपकर पैसे बोए थे, उन्हें लगा कि पैसों से रुपयों के पेड़ उगेंगे लेकिन रुपयों के पेड़ नहीं उगे।
2 .छुटपन में कवि द्वारा पैसों का रोपण किस बात का परिचायक है ?
छुटपन में कवि द्वारा पैसों का रोपण इस बात का परिचायक है कि कवि को रुपयों का लालच था। रुपयों की मधुर फसलें चाहते थे व मोटा सेठ बनना चाहते थे।
3. कवि ने क्या गलत किया था?
कवि ने गलत बीज बोए थे। तृष्णा को सींचा था।
#SPJ2
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