मॉडल बना हआ था। इसकी पटरियाँ-उस पर खड़ी छोटे-छोटे डिब्बों वाली ट्रेना एक और लाल टीन की छतवाला स्टेशन और
सरवर, स्कैंडल पॉइंट के ठीक सामने उन दिनों एक दुकान हुआ करती थी, जिसके शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन का
सामने सिग्नल देता खंबा-थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनी सुरंगें। पिछली सदी में तेज रफ्तारवाली गाड़ी वही थी। कभी-कभी हवाई
जहाज भी देखने को मिलते! दिल्ली में जब भी उनकी आवाज आती, बच्चे उन्हें देखने वाहर दौड़ते। दीखता एक भारी-भरकम
पक्षी उड़ा जा रहा है पंख फैलाकर। यह देखो और वह गायब उसकी स्पीडही इतनी तेज लगती। हाँ, गाड़ी के मॉडलवाली दुकान
डॉक्टर अंग्रेज थे। शुरू-शुरू में चश्मा लगाना बड़ा अटपटा लगा। छोटे-बड़े मेरे चेहरे की ओर देखते और कहते-आँखों में कुछ
के साथ एक और ऐसी दुकान थी जो मुझे कभी नहीं भूलती। यह वह दुकान थी जहाँ मेरा पहला चश्मा बना था। वहाँ ऑी के
तकलीफ़ है! इस उम में ऐनका दूध पिया करो। मैं डॉक्टर साहिब का कहा दोहरा देती-कुछ देर पहनोगी तो ऐनक उतर जाएगी।
विषय: हिंदी (बचपन) भाग-4
कक्षा: VI विद्यार्थी का नाम
कक्षाध्यापकका नाम
बच्चो | पिछले कार्यपत्रों में हमने जाना कि बचपन पाठ की लेखिका
कृष्णा सोबती जी ने अपने पहनावे, अपने खानपान की आदतों और अपने
बचपन के शौक को बताया है। अब आगे
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Did you mean: मॉडल बना हुआ था। इसकी पटरियाँ-उस पर खड़ी छोटे-छोटे डिब्बों वाली ट्रेना एक और लाल टीन की छतवाला स्टेशन और सरवर, स्कैंडल पॉइंट के ठीक सामने उन दिनों एक दुकान हुआ करती थी, जिसके शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन का सामने सिग्नल देता खंबा-थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनी सुरंगें। पिछली सदी में तेज रफ्तारवाली गाड़ी वही थी। कभी-कभी हवाई जहाज भी देखने को मिलते! दिल्ली में जब भी उनकी आवाज आती, बच्चे उन्हें देखने वाहर दौड़ते। दीखता एक भारी-भरकम पक्षी उड़ा जा रहा है पंख फैलाकर। यह देखो और वह गायब उसकी स्पीडही इतनी तेज लगती। हाँ, गाड़ी के मॉडलवाली दुकान डॉक्टर अंग्रेज थे। शुरू-शुरू में चश्मा लगाना बड़ा अटपटा लगा। छोटे-बड़े मेरे चेहरे की ओर देखते और कहते-आँखों में कुछ के साथ एक और ऐसी दुकान थी जो मुझे कभी नहीं भूलती। यह वह दुकान थी जहाँ मेरा पहला चश्मा बना था। वहाँ ऑी के तकलीफ़ है! इस उम में ऐनका दूध पिया करो। मैं डॉक्टर साहिब का कहा दोहरा देती-कुछ देर पहनोगी तो ऐनक उतर जाएगी। विषय: हिंदी (बचपन) भाग-4 कक्षा: VI विद्यार्थी का नाम कक्षाध्यापकका नाम बच्चो | पिछले कार्यपत्रों में हमने जाना कि बचपन पाठ की लेखिका कृष्णा सोबती जी ने अपने पहनावे, अपने खानपान की आदतों और अपने बचपन के शौक को बताया है। अब आगे