मोि एक स
ुंदि पक्षी है । इसे पक्षक्षयों का िाजा भी कहते है
इसलिए भाित सिकाि ने मोि को िाष्ट्रीय पक्षी माना है । मोि का शिीि दसू िे पक्षक्षयों
से भािी होता है । इसलिए वह आकाश में ऊँ चा उड़ नहीुं सकता । मोि की गिदन
िुंबी होती है औि आँिें छोटी-छोटी होती हैं। इसके लसि पि एक स
ुंदि किगी होती
है। इसके पिुं ों पि आधे चाँद के ननशान होते हैं। िेककन इसके पिै बह
त ही भद्दे
होते हैं। मोि दाना औि कीड़े-मकोड़े िाता है । मोि का नत्ृ
य मनमोहक होता है ।
इस गद्याुंश को उचचत शीिषक दीजजए ।
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द्विगु समास
जिस समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो, द्विगु समास कहलाता है।
जैसे-
नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
सप्तदीप = सात दीपों का समूह
त्रिभुवन = तीन भुवनों का समूह
सतमंजिल = सात मंजिलों का समूह
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