मुगल चित्र शैली की दो विशेषताएं लिखें
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मुगल चित्रकला शैली का विकास चित्रकला की स्वदेशी भारतीय शैली और फारसी चित्रकला की सफाविद शैली के एक उचित संश्लेषण के परिणामस्वरुप हुआ था। इस शैली की शुरूआत बाबर (1526-30) से मानी जाती है। उसे फारसी कलाकार बिहजाद को संरक्षण देने वाला कहा जाता है।
अकबर को चित्रकला और अपने दस्तावेजों के सुलेखन के लिए समर्पित एक पूरे विभाग जीसे "तस्वीर खाना"के रूप में औपचारिक कलात्मक स्टूडियो बनाया। जहाँ कलाकारों को वेतन पर रखा गया। अकबर चित्रकला को अध्ययन और मनोरंजन के साधन के रूप में देखता था।
मुगल चित्रकला जहांगीर के शासनकाल में अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गयी । वह स्वभाव से प्रकृतिवादी था और वनस्पतियों और जीवों , यानी पक्षियों , पशुओं वृक्षों और फूलों के चित्रों को प्राथमिकता देता था ।
उसने "छविचित्र" में प्रकृतिवाद लाने पर बल दिया । इस अवधि में विकसित होने वाली एक अनूठी प्रवृत्ति चित्रों के चारों ओर अलंकृत किनारों/बार्डर की थी । ये कभी कभी उतने व्यापक होते थे जितना कि स्वयं जहांगीर को भी एक अच्छा कलाकार माना गया चित्र जाता है और उसकी अपनी स्वयं की निजी कार्यशाला थी
उसकी चित्रशाला में अधिकांशत : लघु चित्रों की रचना की गई और इनमें से सबसे प्रसिद्ध जेबरा , शतुर्मुर्ग और मर्गे के प्राकृतिक चित्र थे । उसके काल के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक उस्ताद मंसूर था ।
उस्ताद मंसूर जटिल से जटिल चेहरे की आकृतियां भी उतारने में विशेषज्ञ था । अयार - ई - दानिश नाम पुस्तक उनके शासनकाल के दौरान लिखी गई थी ।
शाहजहां पिता और दादा विरूद्ध कृत्रिम तत्वों की रचना पसंद करता था और युरोपीय प्रभाव से प्रेरित था। वह पूर्व काल के आरेखन और चित्रण की तकनीक में भी परिवर्तन लाया ।
वह आरेखन के लिए लकड़ी के कोयले के उपयोग से दूर रहा और पेंसिल का उपयोग करके आरेखन और रेखाचित्रण करने के लिए कलाकारों को प्रोत्साहित करताउसने चित्रों में सोने और चांदी का उपयोग बढ़ाने का आदेश दिया ।
वह अपने पर्ववर्तियों की तुलना में चमकीले रंग अधिक पसंद करता था । इसलिए , हम कह सकते हैं कि उसके । शासनकाल के दौरान मुगल चित्रशाला का विस्तार हुआ लेकिन शैली और तकनीक में बहुत कुछ परिवर्तन भी आया ।
औरंगजेब ने चित्रकला को प्रोतसाहित नहीं किया।उस काल दौरान चित्रकलाओं की गतिविधियों में अवरोघ हुआ और मुगल चित्रकला मे बडे पैमाने मे गीरावट आई।