मंगल ग्रह के वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान और उपकरणों का प्रयोग क्यों नहीं कर सकते हैं galdi ans
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लाल ग्रह यानि मंगल हमेशा से ही मानव सभ्यता को कौतूहल में डालता रहा है.
इसे लेकर प्राचीन सभ्यताओं में किंवदंतियां भी प्रचलित रही हैं लेकिन आधुनिक काल में विज्ञान ने इसके रहस्यों पर से पर्दा हटाने की काफ़ी कोशिश की है.
एक नज़र मंगल के राज़ फ़ाश करने के वैज्ञानिक प्रयासों पर
1. 14 जुलाई 1965 को मरीनर-4 अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह तक पहुंचा. इसने किसी दूसरे ग्रह की पहली तस्वीरें भेजीं.
इसने धरती पर भेजी थी 21 धुंधली काली तस्वीरें. मरीनर-4 मंगल ग्रह से 6,118 मील की दूरी से गुज़रा था.
मंगल ग्रह के बारे में मरीनर-4 ने जो जानकारी दी उसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी. मंगल ग्रह पर कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं था.
इस पर वातावरण का दबाव धरती पर मौजूद वातावरणीय दबाव से बहुत कम था.
2. मरीनर-9 को 30 मई 1971 को लॉन्च किया गया था. ये मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा और उसका पहला कृत्रिम उपग्रह बन गया.
मरीनर-9 ने ही बताया कि मंगल पर धूल भरे तूफ़ान उठते रहते हैं. ये जब पहुंचा तब मंगल की सतह पर धूल भरा तूफ़ान था.
ये तूफ़ान एक महीने बाद ख़त्म हुआ और तब मरीनर-9 ने ज्वालामुखियों और खाइयों वाले मंगल की तस्वीरें भेजी.
मंगल की सबसे बड़ी खाई 4800 किलोमीटर लंबी है. सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात थी इस सूखे ग्रह पर नदियों के तल के निशान.
मरीनर-9 ने ही मंगल के दोनों चंद्रमाओं की बेहद पास की तस्वीरें भेजीं.
3. मार्स-3 सोवियत संघ का अंतरिक्षयान था. ये मंगल ग्रह पर मार्स 2 के पांच दिन बाद पहुंचा था.
इस यान के दो मक़सद थे, पहला मंगल की कक्षा में एक ऑर्बिटर छोड़ना और दूसरा मंगल की सतह पर एक लैंडर उतारना.
इस अंतरिक्षयान की ख़ासियत थी कि यह मंगल की सतह पर सही सलामत उतर गया.
ये अंतरिक्षयान सिर्फ़ 20 सेकेंड तक ही मंगल की सतह से तस्वीरें भेज सका. माना जाता है कि धूल की वजह से इसने काम करना बंद कर दिया था.
हालांकि जो तस्वीरें इसने भेजी उन की ज़्यादा अहमियत नहीं थी.लेकिन ये अंतरिक्षयान जुलाई 1972 तक काम की जानकारी भेजता रहा.
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mangal grah ke vaignanik antariksh yaan ka prayog nahi kar sakte kyunki vah use bana nahi paate antariksh me gravitation force gyada hota hai banane ko jaya to vah us jaate hai..