History, asked by satya982055, 1 year ago

मुगलों की राजपूत नीति के अंतर्गत औरंगज़ेब का आलोचनात्मक विश्लेषण ​

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Answered by abinashfun555
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अकबर

दमन और समझौते की नीति पर आधारित थी। उसके द्वारा अपनायी गयी नीति पर दोनों पक्षों का हित निर्भर करता था।

अकबर की राजपूत नीति का उद्देश्य –साम्राज्य के स्थायित्व के लिए राजपूतों की सहानुभूति प्राप्त करना था। अकबर ने राजपूत राजाओं को बादशाह द्वारा प्रदत्त जागीर के अलावा अपनी पैतृक जागीर( वतन जागीर ) पर भी शासन करने का अधिकार दिया था, जबकि राजपूतों के अलावा अन्य अमीरों के साथ ऐसा नहीं होता था। अकबर एकमात्र राजपूत राजा सुरजन राय हाङा ( रणथंभौर ) को तव्वरा (वाद्ययंत्र) बजाने की छूट दी थी।

अकबर ने अपनी राजपूत नीति के परिणामस्वरूप 1563ई. में तीर्थयात्रा-कर तथा 1564 ई. में जजिया कर को समाप्त कर दिया था।

मारवाङ के शासक मालदेव ने अपनी एक बेटी कनका बाई का विवाह गुजरात के सुल्तान महमूदशाह तथा दूसरी बेटी लालबाई का विवाह सूरशासक इस्लामशाह सूर के साथ किया था।

अकबर ने सभी राजपूत राजाओं से स्वयं के सिक्के चलाने का अधिकार छीन लिया था तथा उनके क्षेत्रों में शाही सिक्कों का प्रचलन कराया।

अकबर की राजपूत नीति उसकी गहन सूझ-बूझ का परिणाम थी। अकबर राजपूतों की शत्रुता से अधिक उनकी मित्रता को महत्व देता था।  अकबर ने राजपूत राजाओं से दोस्ती कर श्रेष्ठ एवं स्वामिभक्त राजपूत वीरों को अपनी सेवा में लिया, जिससे मुग़ल साम्राज्य काफ़ी दिन तक जीवित रह सका।

राजपूतों ने मुग़लों से दोस्ती एवं वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर अपने को अधिक सुरक्षित महसूस किया। इस तरह अकबर की एक स्थायी, शक्तिशाली एवं विस्तृत साम्राज्य की कल्पना को साकार करने में राजपूतों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अकबर ने कुछ राजपूत राजाओं जैसे-भगवान दास, राजा मानसिंह, बीरबल एवं टोडरमल को उच्च मनसब प्रदान किया था।

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