मृगतृष्णा ' किसे कहते हैं , कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ?
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मृगतृष्णा प्रकाश से बनने वाली एक प्राकृतिक घटना है; जिसके कारण किसी को झूठमूठ में पानी दिखाई देता है। ऐसा अकसर तपती दोपहरी में रेगिस्तान में होता है। किसी प्यासे पथिक को लगता है कि दूर कहीं एक नखलिस्तान है। लेकिन जब वह दौड़कर पास जाता है तो वहाँ पर रेत के सिवा कुछ भी नहीं पाता है। इस कविता में कवि ने मृगतृष्णा का प्रयोग उस बड़प्पन के अहसास के लिए किया जो हम अक्सर अपनी उन उपलब्धियों पर करते हैं जो हमें भूतकाल में मिली थीं।
मई-जून महीने की चिलचिलाती गरमी में रेगिस्तान में दूर से चमकती रेत पानी का भ्रम पैदा करती है। गरमी में प्यास से बेहाल मृग उसी चमक को पानी समझकर उसके पास दौड़कर जाता है और निराश होता है। वहाँ से उसे कुछ दूर पर यही चमक फिर पानी का भ्रम पैदा करती है और वह रेगिस्तान में इधर-उधर भटकता-फिरता है। इस कविता में इसका प्रयोग बड़प्पन के अहसास के लिए किया गया है जिसके पीछे मनुष्य आजीवन भागता-फिरता है।