मेघ आए बड़े बन ठन के सवर के आगे आगे नाचते गाते बार चली दरवाजे खिड़कियां खुलने लगी गली-गली पाहुन जो आए हो गांव में शहर के मेघ आए बड़े बन बन के सवर के यह कवीता कीसने लीखी है
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उपरी कविता सर्व्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखी गई है
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