'मेघ गगन में गर्जन भरते हैं।' वाच्य बदलने से यह वाक्य होगा -
Answers
Answer:
मेघ द्वारा गगन में गर्जना भरी जाती है।
Answer:
सूर्य अस्त हो रहा था । मेघनाद के प्रमोद वन में भांति-भांति के फूल खिले थे और फवारे चल रहे थे। सखियां इधर-उधर फूल चुनती फिर रही थीं । कुछ मालाएं गूंथ रही थीं। सुलोचना अपने पति मेघनाद के विरह में व्याकुल हो स्फटिक शिला पर अधोमुख पड़ी रो रही थी। सखियां विषष्ण- वदन उसके निकट बैठ बांसुरी, वीणा, मृदंग, बजाकर उसे प्रसन्न करने का विफल प्रयत्न कर रही थीं। सुलोचना ने एक सखी के गले में हाथ डालकर कहा, "देख, सखी ! यह अंधेरी रात कालसर्पिणी की भांति मुझे उसने आ रही है। अरी, इस अन्धनिशा में अरिन्दम इन्द्रजीत कहाँ है ? अभी आऊंगा, कहकर वह महाबली चला गया। अभी तक नहीं आया। कहो, इतना विलम्ब क्यों हो रहा है ?"
सखी ने उत्तर दिया, "प्यारी सखी ! मैं नहीं जानती कि वे क्यों अभी तक नहीं आए; किन्तु सखी, चिन्ता न करो। वे राम का नाश करके आ ही रहे होंगे। अरी, जिसका शरीर सुरासुर के शरों से अभेद्य है, उससे कौन युद्ध करेगा ? फिर तुम्हारे सतीत्व के प्रभुत्व से तुम्हारे प्राणनाथ पृथ्वी पर अजेय हैं। जो ये पुष्पमालाएं हमने गूंथी हैं, तुम हंस-हंसकर स्वामी के कंठ में डालना । "
सुलोचना ने सूर्यमुखी का कुम्हलाया फूल देखकर कहा, "अरे पुष्प ! सूर्य के बिना तेरी इस निशाकाल में जो दशा हो रही है, वह खूब अनुभव कर रही हूं मैं । अरे, तेरी ही भांति मेरे हृदय में भी इस समय अंधकार ही अंधकार है।"
सखी ने उसे धीरज देते हुए कहा, "प्रिय ! इतनी अधीर मत हो ।" "अरी, विच्छेद की इस ज्वाला से तो मेरे प्राण चले जाते हैं।