मेघालय के मुख्य लेखकों के नाम बताइएं
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Arundhati roy ,Queenie rynjah , Ithell colquhuon are some main writers from meghalaya . please make it as brainlist .
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अरुंधति राय
ममांग दई
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ममांग दई का जन्म 23 फरवरी 1957 को पासीघाट, पूर्वी सियांग जिले में मातीन दई और ओडी दाई के परिवार में हुआ। इनका परिवार 'आदि' जनजाति (आदिवासी) से संबंधित है। पाइन माउंट स्कूल, शिलांग, मेघालय से इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की है और गौहाटी विश्वविद्यालय, असम से अंग्रेजी साहित्य में कला स्नातक हैं।
अरुंधति राय अंग्रेजी की सुप्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी हैं। अरुंधति राय अंग्रेजी की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं, जिन्होंने कुछेक फ़िल्मों में भी काम किया है। "द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स" के लिये बुकर पुरस्कार प्राप्त अरुंधति राय ने लेखन के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन समेत भारत के दूसरे जनांदोलनों में भी हिस्सा लिया है। कश्मीर को लेकर उनके विवादास्पद बयानों के कारण वे पिछले कुछ समय से चर्चा में हैं।
शिलौंग में 24 नवम्बर 1961 को जन्मी अरुंधति राय ने अपने जीवन के शुरुवाती दिन केरल में गुज़ारे। उसके बाद उन्होंने आर्किटेक्ट की पढ़ाई दिल्ली से की। अपने करियर की शुरुवात उन्होंने अभिनय से की। मैसी साहब फिल्म में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अलावा कई फिल्मों के लिये पटकथायों भी उन्होंने लिखीं। जिनमें In Which Annie Gives It Those Ones (1989), Electric Moon (1992) को खासी सराहना मिली। १९९७ में जब उन्हें उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के लिये बुकर पुरस्कार मिला तो साहित्य जगत का ध्यान उनकी ओर गया।
अरुंधति ने पुरस्कृत फिल्म मैसी साहिब में एक गाँव की लड़की की भूमिका निभाई थी और अरुंधति ने व्हिच ऐनी गिव्स इट दोज वन्स और इलेक्ट्रिक मून के लिए पटकथा की भी रचना की। जब वर्ष 1996 में अरुंधति रॉय की पुस्तक द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स प्रकाशित हुई, तो वह रातों रात एक सेलिब्रिटी बन गईं। द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स की सफलता के बाद रॉय के कई निबंध प्रकाशित हुए और उन्होंने सामाजिक मामलों के लिए भी काम किया।
अरुंधति रॉय संयुक्त राज्य अमेरिका की नई-साम्राज्यवादी नीतियों की एक मुखर आलोचक रही हैं और उन्होंने भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम की आलोचना की है। अरुंधति रॉय ने द इंड ऑफ इमेजिनेशन (1998) नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने भारत सरकार की परमाणु नीतियों की आलोचना की है। जून 2005 में अरुंधती रॉय ने ईराक के वर्ल्ड ट्रिब्यूनल में भी सहभागिता निभाई।
1997 में उनके उपन्यास दी गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स को मैन बुकर प्राइज मिला। साथ ही इस किताब को ‘न्यू यॉर्क टाइम्स नोटेबल बुक्स ऑफ़ दी इयर 1997’ में भी शामिल किया गया। जब अरुंधती की दी गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स का प्रकाशन किया गया तब अरुंधती रॉय बुरी तरह से किसी दुसरे विवाद में उलझी हुई थी। रॉय ने फिल्मो में भी काम किया था। उनके दुसरे पति फिल्मनिर्माता प्रदीप किशन ने उन्हें फिल्म मेसी साब में छोटा सा रोल दिया था।
इसके बाद अरुंधती ने बहुत से टेलीविज़न सीरीज जैसे भारतीय स्वतंत्रता अभियान और दो फिल्म, एनी और इलेक्ट्रिक मून के लिए लिखने का काम भी किया है। रॉय ने बहुत से सामाजिक और पर्यावरणीय अभियानों में भाग लिया है। आम आदमी की तरफ से मानवों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ निडर होकर आवाज उठाने हिम्मत को देखकर उन्हें 2002 में लंनन कल्चरल फ्रीडम अवार्ड और 2004 में सिडनी पीस प्राइज और 2006 में साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
1994 में अरुंधती राय को बहुत ध्यान मिला जब उन्होंने फूलन देवी के आधार पर शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्विन की आलोचना की। उन्होंने अपनी फिल्म समीक्षा में "द ग्रेट इंडियन रैप ट्रिक" नामक फिल्म को निंदा किया। इसके अलावा, उन्होंने इस तथ्य की निंदा की जीवित बलात्कार पीड़ित की सहमति के बिना घटना को फिर से बनाया गया था।
साथ ही, उन्होंने फूलन देवी के जीवन को गलत तरीके से प्रस्तुत करने और बहुत आंशिक तस्वीर स्केच करने के लिए कपूर पे आरोप लगाया। अपने बहुत प्रशंसित उपन्यास के बाद, रॉय ने फिर से एक पटकथा लेखक के रूप में काम करना शुरू किया और "द बानियन ट्री" और वृत्तचित्र "डीएएम / एजीई: ए फिल्म विद अरुंधती रॉय" (2002) जैसे टेलीविज़न धारावाहिकों के लिए लिखा। 2007 की शुरुआत में, रॉय ने घोषणा की कि वह अपने दूसरे उपन्यास पर काम करना शुरू कर देगी।
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