"मैं हार गई' कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।
'पुरस्कार' कहानी का प्रतिपाद्य
अथवा
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"मैं हार गई' कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।
मैं हार गई' कहानी मन्नू जी की प्रसिद्ध कहानी है| इस कहानी की नायिका एक नेता की पुत्री थी| किसी कवि ने एक सम्मेलन में उनकी मज़ाक उड़ाया गया| इसलिए वह कहानी लिखना चाहती है कि मैं हार गई| वह एक गरीब किसान के घर पैदा हुई थी| बड़ा होने पर इस कहानी में लेखिका एक नेता का निर्माण करना चाहती है| वह एस ईमानदारी नेता का निर्माण करना चाहती थी| ऐसा नेता जो भ्रष्टाचार को खत्म कर सके और ईमानदारी के रास्ते पर चले | लेखिका इस कार्य में सफल नहीं हो पाती इसलिए वह अंत में कहती है कि मैं हार गई| बहुत कोशिश करती है| वह बहुत से लोगों को एक सफल नेता बनाने की कोशिश करती है| अंत में लेखिका कहती है कि मैं हार गई | किसी भी वर्ग में कोई भी अच्छे नेता बनने के कोई गुण नहीं है |
'पुरस्कार' कहानी का प्रतिपाद्य
'पुरस्कार' कहानी लेखक ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारालिखी गई है| यह कहानी प्रेम और संघर्ष पर आधारित है| कहानी में मधुलिका अरुण नाम के लड़के से प्रेम करती थी पर उतना ही प्रेम वह अपनी जन्मभूमि से भी करती थी| अरुण उसे जन्मभूमि और आक्रमण करना चाहता था| मधुलिका ने अपना कर्तव्य निभाया और अरुण को सजा दिलवाई| अरुण को मृत्युदंड दिया जाता है। जब राजा मधुलिका से खुश होकर उससे पुरस्कार मांगने को खाता तो , मधुलिका अपने लिए भी मृत्युदंड मांगती है , क्योंकि वह अरुण से प्रेम करती थी और उसके पास जा कर खड़ी हो जाती है| वह पुरस्कार के रूप में, मृत्युदंड मांगती है।
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