Hindi, asked by Ziasajid1303, 8 months ago

मोहन राकेश द्वारा अपरिचित कहानी का सारांश

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Answered by SonalRamteke
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Answer:

कोहरे की वजह से खिड़कियों के शीशे धुँधले पड़ गये थे। गाड़ी चालीस की रफ़्तार से सुनसान अँधेरे को चीरती चली जा रही थी। खिड़की से सिर सटाकर भी बाहर कुछ दिखाई नहीं देता था। फिर भी मैं देखने की कोशिश कर रहा था। कभी किसी पेड़ की हल्की-गहरी रेखा ही गुज़रती नज़र आ जाती तो कुछ देख लेने का सन्तोष होता। मन को उलझाए रखने के लिए इतना ही काफ़ी था। आँखों में ज़रा नींद नहीं थी। गाड़ी को जाने कितनी देर बाद कहीं जाकर रुकना था। जब और कुछ दिखाई न देता, तो अपना प्रतिबिम्ब तो कम से कम देखा ही जा सकता था। अपने प्रतिबिम्ब के अलावा और भी कई प्रतिबिम्ब थे। ऊपर की बर्थ पर सोये व्यक्ति का प्रतिबिम्ब अजब बेबसी के साथ हिल रहा था। सामने की बर्थ पर बैठी स्त्री का प्रतिबिम्ब बहुत उदास था। उसकी भारी पलकें पल-भर के लिए ऊपर उठतीं, फिर झुक जातीं। आकृतियों के अलावा कई बार नई-नई आवाज़ें ध्यान बँटा देतीं, जिनसे पता चलता कि गाड़ी पुल पर से जा रही है या मकानों की क़तार के पास से गुज़र रही है। बीच में सहसा इंजन की चीख़ सुनाई दे जाती,जिससे अँधेरा और एकान्त और गहरे महसूस होने लगते।

मैंने घड़ी में वक़्त देखा। सवा ग्यारह बजे थे। सामने बैठी स्त्री की आँखें बहुत सुनसान थीं। बीच-बीच में उनमें एक लहर-सी उठती और विलीन हो जाती। वह जैसे आँखों से देख नहीं रही थी, सोच रही थी। उसकी बच्ची, जिसे फर के कम्बलों में लपेटकर सुलाया गया था, ज़रा-ज़रा कुनमुनाने लगी। उसकी गुलाबी टोपी सिर से उतर गयी थी। उसने दो-एक बार पैर पटके, अपनी बँधी हुई मुट्ठियाँ ऊपर उठाईं और रोने लगी। स्त्री की सुनसान आँखें सहसा उमड़ आयीं। उसने बच्ची के सिर पर टोपी ठीक कर दी और उसे कम्बलों समेत उठाकर छाती से लगा लिया।

मगर इससे बच्ची का रोना बन्द नहीं हुआ। उसने उसे हिलाकर और दुलारकर चुप कराना चाहा, मगर वह फिर भी रोती रही। इस पर उसने कम्बल थोड़ा हटाकर बच्ची के मुँह में दूध दे दिया और उसे अच्छी तरह अपने साथ सटा लिया।

मैं फिर खिड़की से सिर सटाकर बाहर देखने लगा। दूर बत्तियों की एक क़तार नज़र आ रही थी। शायद कोई आबादी थी, या सिर्फ़ सडक़ ही थी। गाड़ी तेज़ रफ़्तार से चल रही थी और इंजन बहुत पास होने से कोहरे के साथ धुआँ भी खिड़की के शीशों पर जमता जा रहा था। आबादी या सडक़, जो भी वह थी, अब धीरे-धीरे पीछे रही जा रही थी। शीशे में दिखाई देते प्रतिबिम्ब पहले से गहरे हो गये थे। स्त्री की आँखें मुँद गयी थीं और ऊपर लेटे व्यक्ति की बाँह ज़ोर-ज़ोर से हिल रही थी। शीशे पर मेरी साँस के फैलने से प्रतिबिम्ब और धुँधले हो गये थे। यहाँ तक कि धीरे-धीरे सब प्रतिबिम्ब अदृश्य हो गये। मैंने तब जेब से रूमाल निकालकर शीशे को अच्छी तरह पोंछ दिया।

स्त्री ने आँखें खोल ली थीं और एकटक सामने देख रही थी। उसके होंठों पर हल्की-सी रेखा फैली थी जो ठीक मुस्कराहट नहीं थी। मुस्कराहट ने बहुत कम व्यक्त उस रेखा में कहीं गम्भीरता भी थी और अवसाद भी-जैसे वह अनायास उभर आयी किसी स्मृति की रेखा थी। उसके माथे पर हल्की-सी सिकुडऩ पड़ गयी थी।

बच्ची जल्दी ही दूध से हट गयी। उसने सिर उठाकर अपना बिना दाँत का मुँह खोल दिया और किलकारी भरती हुई माँ की छाती पर मुट्ठियों से चोट करने लगी। दूसरी तरफ़ से आती एक गाड़ी तेज़ रफ़्तार में पास से गुज़री तो वह ज़रा सहम गयी, मगर गाड़ी के निकलते ही और भी मुँह खोलकर किलकारी भरने लगी। बच्ची का चेहरा गदराया हुआ था और उसकी टोपी के नीचे से भूरे रंग के हल्के-हल्के बाल नज़र आ रहे थे। उसकी नाक ज़रा छोटी थी, पर आँखें माँ की ही तरह गहरी और फैली हुई थीं। माँ के गाल और कपड़े नोचकर उसकी आँखें मेरी तरफ घूम गयीं और वह बाँहें हवा में पटकती हुई मुझे अपनी किलकारियों का निशाना बनाने लगी।

Answered by franktheruler
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राकेश मोहन द्वारा अपरिचित कहानी का सारांश निम्नलिखित है।

  • अपरिचित कहानी ट्रेन में मिले दो अजनबी यात्रियों की कहानी है । एक पुरुष व एक महिला ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। वे दोनों आमने सामने वाली सीट पर बैठे थे।
  • बातों बातों में वे दोनों अपने जीवन से जुड़ी व्यथा एक दूसरे को बताते है।
  • स्त्री का पति डॉक्ट्रेट की पढ़ाई करने विदेश गया था जिसे वह एयरपोर्ट छोड़ने गई थी, उसकी चार महीने की छोटी बेटी थी। उस महिला ने बताया कि उसके पति को उसकी कोई बात अच्छी नहीं लगती, आपस में उन दोनों के विचार भी नहीं मिलते थे। उसके पति को लोगों से मिलना, पार्टियों व क्लबों में जाना अच्छा लगता था दूसरी ओर उसे गांव का शांत वातावरण पसंद था, उसे अधिक बोलना पसंद नहीं था, क्लब व पार्टियो में न जाकर उसे पहाड़ों पर जाना पसंद था। उसने अपने सारे गहने बेचकर पति को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने में सहायता की ।
  • ट्रेन में बैठे पुरुष की भी यही व्यथा थी कि उसके व उसकी पत्नी के विचार आपस में नहीं मिलते थे, उसकी पत्नी एक लेक्चरर थी इसलिए घर में भी लेक्चर देने की उसकी आदत हो गई थी। उसे अधिक बोलना पसंद नहीं था परन्तु उसकी पत्नी पूरा दिन बोलती रहती थी। उसकी पत्नी चाहती थी कि वह अपना सोशल स्टेटस बनाए, लोगों से मिले परन्तु इस पुरुष को यह सब पसंद नहीं था।
  • कहानी के अंत में पुरुष सोया ही हुआ था, स्त्री न जाने कौनसी स्टेशन पर उतर गई थी।

#SPJ2

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