Hindi, asked by whatever24, 1 month ago

मेहनत का महत्व पर एक लघु कथा​

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Answered by Anonymous
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एक गाँव में गोपाल नाम का एक धनी किसान रहता था। गोपाल बहुत ही आलसी था। वह न तो अपने खेतों की देखभाल करता और न ही अपने गाय -भेसों की। ... इससे उसे खेती में भी हानि होने लगी और गाय-भेसों से भी उसे कोई लाभ नही हो पा रहा था।एक दिन गोपाल का पुराना मित्र रामलाल उससे मिलने के लिए उसके घर आया।जब रामलाल ने घर की हालत देखी तो वह बहुत दुखी हुआ। उसने समझ लिया कि गोपाल ने अपने आलसी स्वभाव को नहीं छोड़ा हैं। उसने गोपाल के आलसी व्यवहार को छुड़ाने की एक युक्ति सोची। उसने अपने मित्र से कहा,” मैं तुम्हारी गरीबी का कारण जानता हूँ और इसे दूर करने का एक सरल उपाय मेरे पास हैं “।

गोपाल ने उत्साहित होकर कहा,”वह उपाय मुझे बता दो में उसे अवश्य करूंगा“

रामलाल ने कहा -“सब पक्षियों के जागने से पहले मानसरोवर पर्वत पर रहने वाला एक सफ़ेद हंस पृथ्वी पर आता हैं और वह दोपहर बीत जाने पर वापस चला जाता हैं”

यह तो पता नहीं वो कब आएगा पर यदि तुम उसके दर्शन कर पाओ तो फिर तुम्हें किसी बात की कोई कमी नहीं रहा जाएगी।

गोपाल भी अपनी दरिद्रता से दुखी था वह तुरंत बोला चाहे कुछ भी हो जाए वह इस हंस के दर्शन अवश्य करेगा।

इसके बाद रामलाल अपने घर वापस चला गया। अगले दिन गोपाल सुबह बहुत जल्दी उठा और हंस की खोज में खलिहान में चला गया। वहां उसने देखा कि एक आदमी उसके ढेर से अनाज उठा कर अपने ढेर में रख रहा हैं। गोपाल को वहां देखकर वह बहुत लज्जित हुआ और क्षमा मांगने लगा।

जब गोपाल को खलिहान में हंस नहीं मिला तो वह वहां से लौटकर गोशाला में चला गया। वहां का रखवाला गाय का दूध निकालकर अपनी पत्नि के लौटे में डाल रहा था। वह भी गोपाल को वहां देखकर डर गया और माफ़ी मांगने लगा। गोपाल ने उसे डांटा और फिर इस तरह कि हेरा फेरी न हो इस बात की उसे चेतावनी दी।

इसके बाद गोपाल घर चला गया वहां उसने जलपान किया। वह एक बार फिर हंस कि तलाश में अपने खेतों की ओर चला गया। वहां उसने देखा की सूरज सर पर चढ़ आया है नौकर फिर भी खेतों में नहीं आये हैं। वह वहां रुककर उनकी इंतजार करने लगा। घंटो इंतजार करने कर बाद नौकर वहां काम करने के लिए आये। उसने उन्हें देरी से आने के लिए डांटा। फिर से यह गलती न हों इस बात की उसे चेतावनी दी।

इस प्रकार वह जहाँ भी गया वहां कोई न कोई हानि जो हो रही थी वह रुक गयी।अब गोपाल रोज उस हंस की तलाश में जाने लगा। सुबह उठने से गोपाल का स्वास्थ्य भी अच्छा हो गया जिन खेतो से केवल 10 मन अनाज होता था। अब वे 3०मन अनाज देने लगे। और जिन गायों से दूध बहुत कम मिलता था। वह अब इतना अधिक मिलने लगा कि गोपाल को वह दूध बेचना पड़ता था।

कुछ महीनों बाद रामलाल फिर से गोपाल से मिलने के लिए आया।तो रामलाल ने पूछा क्या मानसरोवर वाला हंस मिला। इस पर गोपाल ने कहा मित्र वह हंस तो नहीं मिला पर मुझे उसकी खोज में लगने से बहुत लाभ हुआ।

इस पर रामलाल ने जोर से ठहका लगाया और बोला मित्र- “परिश्रम करना ही वह सफ़ेद हंस है, जिसके पंख सदा उजले होते हैं। जो व्यक्ति स्वयं परिश्रम न करके नौकरों के सहारे रहता है  वह सदैव ही हानि उठाता हैं ।”

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