Hindi, asked by antratapkire37, 2 months ago

मै जानउ निजनाथ सुभाऊ।अपराधिहु पर कोह काऊ​

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चौपाई

सुनि मुनि बचन राम रुख पाई। गुरु साहिब अनुकूल अघाई।।

लखि अपने सिर सबु छरु भारू। कहि न सकहिं कछु करहिं बिचारू।।

पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढें। नीरज नयन नेह जल बाढ़ें।।

कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहौं मैं काहा।

मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ।।

मो पर कृपा सनेह बिसेषी। खेलत खुनिस न कबहूँ देखी।।

सिसुपन तेम परिहरेउँ न संगू। कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू।।

मैं प्रभु कृपा रीति जियँ जोही। हारेहुँ खेल जितावहिं मोही।।

दोहा/सोरठा

महूँ सनेह सकोच बस सनमुख कही न बैन।

दरसन तृपित न आजु लगि पेम पिआसे नैन।।260।।

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