· माँज दो तलवार को, लगाओ न देरी,
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी। तलवार और ढाल कि आवायसकता कॅब परती है
Answers
Answer:
मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
मॉं तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
मॉंज दो तलवार को, लाओ न देरी
बॉंध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया धनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो
गॉंव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बाऍं हाथ में ध्वज को थमा दो
सुमन अर्पित, चमन अर्पित
नीड़ का तृण-तृण समर्पित
चहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
∼ राम अवतार त्यागी
Answer:
Concept:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'मंजरी' की 'समर्पण' नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता रामावतार त्यागी जी हैं।
Find:
माँज दो तलवार को, लगाओ न देरी,
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी।
Given:
माँज दो तलवार को, लगाओ न देरी,
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी।
Explanation:
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने स्वदेश के प्रति अनन्य - भक्ति प्रकट करते हुए तन-मन-धन-जीवन अर्थात् सर्वस्व समर्पित करने के पश्चात भी कुछ और भेंट चढ़ाने की इच्छा की है।
कवि अनुरोध करता है- हे माता! थोड़ा भी विलम्ब किए बिना मेरी तलवार की धार पैनी करे मुझे दे दो, मेरी पीठ पर ढाल बाँध दो; मेरे माथे पर अपने चरणों की धूलि का टीका लगा दो तथा सिर पर आशीष (आशीर्वाद) की घनी छाया कर दो!
मेरे सपने, प्रश्न, आयु का एक-एक क्षण तुम्हें समर्पित है; फिर भी, हे मेरे तुम पर कुछ और न्योछावर करना चाहता हूँ।
कवि कहता है- हे माँ! मैं दीन-हीन तुम्हारे ऋण से पूरी तरह दबा हुआ हूँ; फिर भी यह निवेदन है कि मैं जब भी थाल में अपना सिर सजाकर तुम्हें समर्पित करने आऊँ, तुम दयाकर अवश्य स्वीकार कर लेना! मेरा गीत, प्राण और एक एक रक्तबिन्दु तुम्हें समर्पित है; फिर भी, हे मेरे देश की भूमि! मैं कुछ और न्योछावर करना चाहता हूँ!
कवि के हृदय में स्वदेश प्रेम का महासागर हिलोरें में ले रहा है। वह तन-मन धन-जीवन सब कुछ देश को समर्पित कर देना चाहता है; फिर भी उसे सन्तोष नहीं होता तथा वह देश की मिट्टी पर कुछ और न्योछावर करने की कामना करता है।
#SPJ2