Hindi, asked by neelamyadav47098, 6 months ago

मेजर ध्यानचंंद का व्यक्तितव आपको किस प्रकार प्ररित करता हे?​

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Answered by deepbukkal
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Answer:

उन्हें हॉकी का जादूगर ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे 'भारतरत्न' से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं किन्तु अब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने से उन्हे यह सम्मान प्रदान किये जाने की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है।1927 ई. में लांबना दिए गए। सन्‌ 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। सन्‌ 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। जब द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ हुआ तो सन्‌ 1943 ई. में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए। बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।

उन्हें हॉकी का जादूगर ही कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे 'भारतरत्न' से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं किन्तु अब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने से उन्हे यह सम्मान प्रदान किये जाने की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है।1927 ई. में लांबना दिए गए। सन्‌ 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। सन्‌ 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। जब द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ हुआ तो सन्‌ 1943 ई. में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए। बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।

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