मुझे 5 अलग-अलग संस्कृत के श्लोक लिखो जो कि खाद्य पदार्थ से संबंधित हो । उनके भावार्थ भी बताने हैं ।
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Explanation:
1)आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
अर्थ – व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।
2)उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।
अर्थ – व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता
3(काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।
अर्थ– हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा, एक बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान नींद, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने वाला जैसे पांच लक्षण होते है।
4)ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।
अर्थ – लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण है।
5)प्रदोषे दीपक : चन्द्र:,प्रभाते दीपक:रवि:।
प्रदोषे दीपक : चन्द्र:,प्रभाते दीपक:रवि:।त्रैलोक्ये दीपक:धर्म:,सुपुत्र: कुलदीपक:।।
अर्थ – संध्या काल में चन्द्रमा दीपक है, प्रभात काल में सूर्य दीपक है, तीनों लोकों में धर्म दीपक है और सुपुत्र कूल का दीपक है।
Explanation:
1)=यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः।।
जहाँ पर हर नारी की पूजा होती है वहां पर देवता भी निवास करते हैं और जहाँ पर नारी की पूजा नहीं होती, वहां पर सभी काम करना व्यर्थ है।
2)=सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।
तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हे नमस्कार है।
3)=अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
जिनका हृदय बड़ा होता है, उनके लिए पूरी धरती ही परिवार होती है और जिनका हृदय छोटा है, उनकी सोच वह यह अपना है, वह पराया है की होती है।
4)=स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते।।
एक मुर्ख की पूजा उसके घर में होती है, एक मुखिया की पूजा उसके गाँव में होती है, राजा की पूजा उसके राज्य में होती है और एक विद्वान की पूजा सभी जगह पर होती है।
5)=किन्नु हित्वा प्रियो भवति। किन्नु हित्वा न सोचति।।
किन्नु हित्वा प्रियो भवति। किन्नु हित्वा न सोचति।।किन्नु हित्वा अर्थवान् भवति। किन्नु हित्वा सुखी भवेत्।।
किस चीज को छोड़कर मनुष्य प्रिय होता है? कोई भी चीज किसी का हित नहीं सोचती? किस चीज का त्याग करके व्यक्ति धनवान होता है? और किस चीज का त्याग कर सुखी होता है?