Hindi, asked by technicalnihalshukla, 10 months ago

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है;
हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है,
प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है,
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीड़ा है,
पलभर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ,
प्रत्येक उर में से तिर जाना चाहता हूँ,
इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ,
अजीब है ज़िन्दगी!!

वेख्या Kariye

Answers

Answered by abhimanyubhai01
0

Answer:

Sar kukar ke bare mein bataiye aur Iske Labh tatha Seema bhi bataiye

Answered by bhatiamona
1

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में

चमकता हीरा है;

हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है,

प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है,

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में

महाकाव्य पीड़ा है,

पलभर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ,

प्रत्येक उर में से तिर जाना चाहता हूँ,

इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ,

अजीब है ज़िन्दगी!!

संदर्भ : यह पंक्तियां 'गजानन माधव मुक्तिबोध' द्वारा लिखी गई कविता 'मुझे कदम-कदम पर' से ली गई हैं। इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है :

व्याख्या : कवि कहता है कि सड़क पर पड़ा हुआ कोई भी साधारण सा दिखने वाला पत्थर हीरा नहीं होता। कहने का तात्पर्य है कि सड़क पर आता जाता कोई भी साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति महत्वपूर्ण और विशेष नहीं होता। कवि कुछ ना कुछ कर गुजरने के लिए उत्सुक है, इसलिए हर मुस्कुराते चेहरे से उसे प्रेम की निर्मल धारा फूटती हुई नजर आती है। कवि को यह भ्रम भी होता है कि हर व्यक्ति के मन में पीड़ादायक और खुशी दोनों के अनुभव विद्यमान होते हैं। इसलिये कवि हर अनुभव से गुजर जाना चाहता है, इसी कारण कवि बहुत कुछ सोच विचार करके जल्दी-जल्दी उन सभी अनुभवों को बटोर लेना चाहता है। वह सभी से सहानुभूति पूर्वक बातचीत करना चाहता है और उनके दुख-दर्द बांटना चाहता है। उनमें रुचि लेना चाहता है। अपना समय और शक्ति लगाकर स्वयं को दिए-दिए फिरता है।

#SPJ3

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