Political Science, asked by mahireravindra3322, 7 months ago

माझ्या कडे खुप पैसा आहे . मी सर्व खरेदी करू शकतो पण वेळी नाही खरेदी करू शकत.................. असे कोण म्हणाले???​

Answers

Answered by yoursolver50
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Explanation:

‘पैसा सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ जरूर है.’ ऐसा कहने के पीछे लोगों की मंशा साफ़ समझ आती है कि वे पैसे को महत्वपूर्ण तो बताना चाहते हैं लेकिन खुद को पैसा परस्त बताने से भी बचना चाहते हैं. हम सब इस बात को बखूबी समझते हैं कि बहुत हद तक पैसा सब कुछ है और उस हद के आगे निकल जाने पर कुछ भी नहीं. वैसे अक्सर यह भी कहा जाता है कि पैसा अगर नहीं है तो सबसे बड़ा है और अगर है तो फिर वह उतना बड़ा नहीं रह जाता. हालांकि यह बात पैसे के साथ-साथ और भी कई चीजों, यहां तक कि इंसानों पर भी पूरी तरह से लागू होती है. यानी जो उपलब्ध है उसका महत्व तब तक पता नहीं चलता जब तक उसके बिना काम चलाने का मौका न आ जाए.

सीधी बात ये है कि पैसे की कद्र करने के पीछे हमारी जरूरतें होती हैं. पैसे का बड़प्पन इस बात से बढ़ता है कि हमारी जरूरत कितनी बड़ी है. अगर हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है तो उस वक्त पैसा हमारे लिए सबसे बड़ी चीज हो सकता है. इसके बाद अगर हमारे पास पहनने के लिए कुछ नहीं है तो पैसा थोड़ा घटे कद के साथ हमारे सामने आकर खड़ा होता है. हमारी जरूरतों की प्राथमिकता जिस हिसाब से बदलती जाती है, पैसे का कद भी उस हिसाब से घटता जाता है.

भारतीय दर्शन में हमेशा पैसे को मिट्टी या हाथ का मैल बताने की परंपरा रही है. इसके पीछे लोगों को मेहनतकश और आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य रहा है. अगर कुछ दशक पहले के समय में जाकर देखें तो पता चलता है कि भारत में लोग खाने-पीने का इंतजाम खुद ही करने पर जोर देते थे. गांवों में खेती, सब्जी उगाना और गाय भैंस पालना लोगों का प्रमुख काम हुआ करता था. और तो और शहरों में भी किचन गार्डन नजर आ जाते थे. यह आत्मनिर्भरता की फितरत लोगों को पैसे के सम्मोहन से बचाने के लिए होती थी.

पैसे के बारे में एक आम राय है कि हर चीज पैसे से नहीं खरीदी जा सकती. जो चीजें पैसे से नहीं खरीदी जा सकतीं उन्हें भी पैसा कहीं न कहीं प्रभावित करता ही है

वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी सभ्यताओं ने एक ही व्यक्ति द्वारा सारे काम कर लेने के बजाय हर व्यक्ति को एक विशेष काम सौंपने और उसमें विशेषज्ञता हासिल करने पर जोर दिया है. यह प्रवृत्ति पैसों पर लोगों की निर्भरता बढ़ा देती है. इस तंत्र का सिद्धांत यह होता है कि किसी एक काम को जानने वाला व्यक्ति उसके जरिये पैसे कमाएगा और उससे अपनी बाकी जरूरतें पूरी करेगा. यह सिद्धांत बहुत हद तक सही और सुविधाजनक दोनों है. विशेषज्ञता के बजाय आत्मनिर्भर होने के क्रम में व्यक्ति के पास एक साथ कई संसाधनों का मौजूद होना जरूरी है. जैसे अगर किसी के पास जमीन है तो ही वह खेती कर पाएगा और अपने भोजन का इंतजाम खुद कर पाएगा. बाकी जरूरतों के लिए भी उसके पास कम से कम प्रारंभिक संसाधन होने जरूरी हैं. ऐसा न होने की स्थिति में उसके सामने जीवन का संकट पैदा हो सकता है.

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