Hindi, asked by veenakumari8993, 5 hours ago

मुझे यह बताएं कि ठंड में पशुपालन कहां जाती है|​

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Answered by shradhanjalisahoo67
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ठंड के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं की देखभाल बहुत ही सावधानी और उचित तरीके से करनी चाहिये। ठंढ में मौसम में होने वाले परिवर्तन से पशुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है, ऐसे में ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशु प्रबंधन ठीक न होने पर मवेशियों को ठण्ड से खतरा पहुंचेगा।ठंड के मौसम में पशुओं की दूध देने की क्षमता शिखर पर होती है तथा दूध की मांग भी बढ़ जाती है अगर दुधारू पशुओं की विशेष सुरक्षा नहीं की गई तो दूध कम कर देंगे। यदि सर्दी के मौसम में पशुओं के रहन-सहन और आहार का ठीक प्रकार से प्रबंध नहीं किया गया तो ऐसे मौसम में पशु के स्वास्थ्य व दुग्ध उत्पादन की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता हठंढ के मौसम में पशुओं को कभी भी ठंडा चारा व दाना नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे पशुओं को ठंड लग जाती है। पशुओं को ठंड से बचाव के लिए पशुओं को हरा चारा व मुख्य चारा एक से तीन के अनुपात में मिलाकर खिलाना चाहिए।ठंडे वातावरण में पशुओं को अपने शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की कमी के कारण ठंड के मौसम में जानवर का शरीर कांपता है ,बीमारी और ठंढ लगने का खतरा रहता है ।ठंड के समय पशुओं के भोजन में ऊर्जा का स्रोत बढ़ाएं जिससे दुधारू गाय और भैंसों को ठंड और बीमारी से बचाया जा सके।ठंढ के मौसम में दुधारू पशुओं को सोयाबीन और बिनौला अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए। बिनौला दूध के अंदर चिकनाई की मात्रा बढ़ाता ह

२.ठंढ के मौसम में पशुओं आवास प्रबन्धन : ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय ,पशुओं के आवास प्रबंधन पर विशेष ध्यान दें। पशुशाला के दरवाजे व खिड़कियों पर बोरे लगाकर सुरक्षित करें। जहां पशु विश्राम करते हैं वहां पुआल, भूसा, पेड़ों की पत्तियां बिछाना जरूरी है। ठंड में ठंडी हवा से बचाव के लिए पशुशाला के खिड़कियों, दरवाजे तथा अन्य खुली जगहों पर बोरी टांग दें। पशुशाला में तिरपाल, पौलिथिन शीट या खस की टाट/पर्दा का प्रयोग करके पशुओं को तेज हवा से बचाया जा सकता है

नवजात पशुओं एवं बढ़ते बछड़े-बछड़ियों को सर्दी व शीत लहर से बचाव की विशेष आवश्यकता होती है। इन्हें रात के समय बंद कमरे या चारो ओर से बंद शेड के अंदर रखना चाहिए लेकिन प्रवेशद्वार का पर्दा/दरवाजा हल्का खुला रखें जिससे कि हवा आ जा सके। इस बात का ध्यान रखें कि छोटे बच्चों के बाड़ों के अन्दर का तापमान ७०-८० सेंटीग्रेड से कम न हो। यदि आवश्यक समझें, तो रात के समय इन शेडों में हीटर का प्रयोग भी किया जा सकता है। बछड़े-बछड़ियों को दिन के समय बाहर धुप में रखना चाहिए तथा कुछ समय के लिए उन्हें खुला छोड़ दें, ताकि वे दौड़-भाग कर स्फ्रुतिवान हो जाएँ।

बहुत सारे पशुपालक सर्दियों में रात के समय अपने पशुओं को बंद कमरे में बांध का रखते हैं और सभी दरवाजे खिड़कियों बंद कर देते हैं, जिससे कमरे के अंदर का तापमान काफी बढ़ जाता है और कई दूषित गैसें भी इकट्ठी हो जाती है,जो पशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। अतः ध्यान रखें कि दरवाजे-खिड़कियाँ पूर्णतः बंद न हो।कुछ पशुपालक भाई पशुघर को चारों तरफ से ढक कर रखतें हैं इससे अधिक नमी बनती है, जिससे रोग जनक कीटाणुओं की संक्रमण की संभावना होती है।

ठंढ के मौसम में पशुघर /पशुओं के बाड़े के साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें , पशुघर में पानी नहीं जमने दें और पशुघर को हमेशा सूखा रखें। पशुघर के अन्दर और बाहर नियमित रूप से विराक्लीन (Viraclean) छिड़काव करें और पशुओं के नाद को भी इसके घोल से धोते रहें ।

३.ठंढ के मौसम में पशुओं का स्वस्थ प्रबंधन:

ठंड के मौसम में प्रायः पशुओं को दस्त की शिकायत होती है। पशुओं को दस्त होने पर ग्रोवेल का ग्रोलिव फोर्ट (Growlive Forte) दें और साथ में एलेक्ट्रल एनर्जी (Electral Energy) दें इस दवा को देने पर तुरंत लाभ होता है ।

ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय इन सभी बातों के अलावा निम्नांकित बातों का ध्यान रखें :

 पशुओं को खुली जगह में न रखें, ढके स्थानों में रखे।

 रोशनदान, दरवाजों व खिड़कियों को टाट और बोरे से ढंक दें।

 पशुशाला में गोबर और मूत्र निकास की उचित व्यवस्था करे ताकि जल जमाव न हो पाए।

 पशुशाला को नमी और सीलन से बचाएं और ऐसी व्यवस्था करें कि सूर्य की रोशनी पशुशाला में देर तक रहे।

 बासी पानी पशुओं को न पिलाए।

 बिछावन में पुआल का प्रयोग करें।

 पशुओं को जूट के बोरे को ऐसे पहनाएं जिससे वे खिसके नहीं।

 गर्मी के लिए पशुओं के पास अलाव जला के रखें।

 नवजात पशु को खीस जरूर पिलाएं, इससे बीमारी से लडऩे की क्षमता में वृद्धि होती है और नवजात पशुओं की बढ़ोतरी भी तेजी से होता है ।

 प्रसव के बाद मां को ठंडा पानी न पिलाकर गुनगुना पानी पिलाएं।

 गर्भित पशु का विशेष ध्यान रखें व प्रसव में जच्चा-बच्चा को ढके हुए स्थान में बिछावन पर रखकर ठंड से बचाव करें।

 बिछावन समय-समय पर बदलते रहे।

 अलाव जलाएं पर पशु की पहुंच से दूर रखें। इसके लिए पशु के गले की रस्सी छोटी बांधे ताकि पशु अलाव तक न पहुंच सके।

 ठंड से प्रभावित पशु के शरीर में कपकपी, बुखार के लक्षण होते हैं तो तत्काल निकटवर्ती पशु चिकित्सक को दिखाएं ।

ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं पर कुप्रभाव न पड़े और दूघ का उत्पादन न गिरे इसके लिए पशुपालकों को अपने पशुओं की देखभाल, ऊपर दिए निर्देशों के अनुसार करना बहुत जरूरी है। ठंड के मौसम में पशुओं की वैसे ही देखभाल करें जैसे हम लोग अपनी करते हैं। उनके खाने-पीने से लेकर उनके रहने के लिए अच्छा प्रबंध करे ताकि वो बीमार न पड़े और उनके दूध उत्पादन पर प्रभाव न पड़े। खासकर नवजात तथा छह माह तक के बच्चों का विशेष देखभाल करें।

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