‘मुझको न नमिा रे कभी प्यार’ कनवता का प्रनतपाद्य निनखए
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मुझको न नमिा रे कभी प्यार’ कविता
यह कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है| यह प्रेम पर लिखी गई कविता है|
कवि सच्चा प्रेम प्राप्त करना चाहता है| उसका हृदय प्रेम के प्यासा है| वह प्यार के लिए तड़पता है| कवि को प्यार के लिए बहुत सी यथाएँ झेलनी पड़ती है| वह सच्चे प्रेम को पाना चाहता था लेकिन वह उसे भ्रम लगता था| कवि ऐसे प्रेम को पाना चाहता था उषा की लालिमा जैसी हो| सुबह की रोशनी की तरह हो |
वह ऐसा प्रेम पाना चाहता था को चन्द्रमा की तरह शीतल हो | परंतु कवि ऐसा प्रेम पा नहीं सका , उस प्रेम को पाने के लिए जितने प्रयास करता है वह फेल हो जाता था|
वह ऐसा चाहता था की उसकी जीवन में कोई ऐसा आए उसके जीवन में खुशियाँ भर दे और उसके सारे कार्य सफल हो जाए | उसके कार्य सफल हो जाए| उसके लिए उसने बहुत प्रयास किए| अंत में उसे प्रेम का मतलब पता चलता है , कवि बताना है कवि कहता मेरा मन पागल था की मुझे प्रेम नहीं मिला | पर प्रेम का माँगा नहीं जाता प्रेम दिया जाता है| कवि ने जितने भी प्रयास किए वह सागर और लहरों की निष्फल होते है| कवि को कभी उसका प्यार नहीं मिला | जिस प्रकार लहरें सागर में नहीं मिल पाती उसी प्रकार उसे अपना प्यार नहीं मिल पाता |