मां की आंखें पड़ाव से पहले की तीर्थ यात्रा की बस के दो पंचर पहिए हैं काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें
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मां की आंखें पड़ाव से पहले की तीर्थ यात्रा की बस के दो पंचर पहिए हैं काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें
काव्य सौंदर्य : यह पंक्तियाँ घर में वापसी कविता से ली गई है| यह कविता धूमिल द्वारा लिखी गई है| कविता में कवि ने अपने परिवार के पांच सदस्यों के बारे वर्णन किया है
कवि माँ की आँखों को बस के दो पहिए कहकर , माँ की आँखों की मन की बात बताना चाहता है| माँ के जीवन का अंतिम समय है| वह कब भगवान के कब चले जाए कुछ पता नहीं|
पंक्ति में ‘पंचर पहिए’ अनुप्रास अलंकार की छटा बिखरते है।
इसमें आँखें को पंचर पहिए कहा है, जो रूपक अलंकार है।
Answer:
श्री सुदामा पाण्डेय धूमिल जी की इस कविता (घर में वापसी) के अंतर्गत घर की गरीबी के कारण उत्पन्न पीड़ा का यथार्थ चित्रण किया गया है | कवि ने अपने सभी पारिवारिक सदस्यों को आँखों के माध्यम से दर्शाया है | तदर्थ माँ की आँखों को पड़ाव से पहले की तीर्थ यात्रा की बस के दो पंचर पहिए कहा है |
कवि के अनुसार माँ की आँखे उस बस की तरह है जो तीर्थ यात्रा जाने को तैयार है किन्तु जिसके दोनो पहिये पंचर हो गए | यहाँ माँ के लिए "पड़ाव "का प्रयोग उनके जीवन के अंतिम समय के रूप में प्रतीकार्थ दर्शाया है | यहाँ कवि ने माँ की आँखों को पंचर पहिये के रूपक में ज्योतिविहीन दर्शाया जिससे प्रतीकात्मकता का सौन्दर्य प्रस्तुत हुआ है | यहाँ गंतव्य तक पहुँचने से पहले होने वाली टीस झलकती है | मानवीय सवेदनाओं को उकेर कर काव्य पंक्तियाँ सहज भाषा में भी मार्मिक चोट करने में सफल रही हैं |