मूक फिल्मो में कैसे हीरो हुआ करते थे ?
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3 मई 2013 (शुक्रवार) को भारतीय सिनेमा पूरे सौ साल का हो गया। किसी भी देश में बनने वाली फिल्में वहां के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाज का दर्पण होती हैं। भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के इतिहास में हम भारतीय समाज के विभिन्न चरणों का अक्स देख सकते हैं।उल्लेखनीय है कि इसी तिथि को भारत की पहली फीचर फ़िल्म “राजा हरिश्चंद्र” का रुपहले परदे पर पदार्पण हुआ था। V इस फ़िल्म के निर्माता भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फालके थे। एक सौ वर्षों की लम्बी यात्रा में हिन्दी सिनेमा ने न केवल बेशुमार कला प्रतिभाएं दीं बल्कि भारतीय समाज और चरित्र को गढ़ने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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मूक फिल्मो में कैसे हीरो हुआ करते थे ?
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछे गए गंभीर सवालों पर सितारों द्वारा पूछने वाले की ही टांग-खिंचाई करने वाले इस दौर में एक पुराने जमाने का अभिनेता ऐसा भी है जो गंभीर सवालों पर बेहद ही उम्दा जवाब देना जानता है. बात नसीरुद्दीन शाह की हो रही है जो हाल ही में अपनी आने वाली फिल्म ‘वेटिंग’ के स्पेशल प्रिव्यू के बाद दर्शकों से मुखातिब हुए थे. कई सवालों के बीच एक टीवी अभिनेता ने उनसे बेहद गंभीरता से पूछा कि आप किरदारों को करते वक्त कैसे अंडरप्ले और ओवरप्ले के बीच के सही संतुलन को हमेशा ही साध लेते हैं. इस सवाल पर नसीर साहब का दिया लंबा जवाब न सिर्फ पठनीय है बल्कि मजेदार भी.