माँ के किस ऋण की बात कवि कहते हैं
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व्याख्या-कवि कहता है कि हे मातृभूमि ! हे माँ! मुझ पर तुम्हारा बहुत ऋण है, परन्तु मैं एकदम गरीब हूँ अर्थात् तुम्हारा ऋण चुकाने में असमर्थ हूँ। किन्तु मैं फिर भी इतना निवेदन कर रहा हूँ कि जब भी मैं थाल में अपना सिर सजा कर लाऊँ, तो तब तुम मेरी वह भेंट दया करके स्वीकार कर लेना।
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