Hindi, asked by undertalker, 1 year ago

ma ka mahatva in hindi

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Answered by kairakhan
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मां का महत्व जीवन में बहुत ही अधिक होता है यह सब बच्चे के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है कि उसकी मां जीवित रहे उनके ख्याल करें मां का प्यार न मिलने के कारण भी बहुत सारे बच्चे अनाथ हो जाते हैं या फिर बिगड़ जाते हैं जिनके कारण हमारे समाज में अनेक तरह की गंदगी अभी फैलती है यह सब लोग जानता है कि मां का होना किसी भी बच्चे के जीवन में कितनी जरूरी होती है और मां के बिना घर भी अधूरा सा लगता है कोई बच्चा सही ढंग से अपना कार्य पूर्ण नहीं कर सकता क्योंकि उसे कुछ नहीं पता होता कि उसे क्या करना है पिता के होने ना होने से इतना फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मां हर कुछ को संभाल लेती है और हर तरफ से बचा कर के भी उसे एक बड़े लक्ष्य की तरफ भेज देती है

अगर हमें मां का महत्व समझना है तो हमें किसी उस बच्चे के पास जाना चाहिए जो बच्चे की मां ना हो हम सबकी तुम आए हैं हम सबको उतना कुछ नहीं फर्क पड़ता कि हम क्या कर रहे नहीं करें हम लोग कभी कबार यह भी बोल देते अपने मां-बाप को कि तुमने हमारे लिए क्या किया लेकिन अगर इस चीज को ध्यान से देखा जाए तो उन लोगों ने हमारे लिए अपना पूरा जीवन हमारे देखरेख हमारे तौर-तरीकों को जनरेशन को समझने के लिए और उसे हमारे मुकाबले बनाने के लिए पूरा मुमकिन कोशिश करके हमें काबिल बनाना चाहा लेकिन हम सब फिर भी कहते तुमने हमारे लिए क्या किया या हमारी जनरेशन की सबसे बड़ी गलती है और हम चाहें तो इसे सुधार सकते हैं क्योंकि हम पढ़ रहे हैं हम स्कूल जाते हैं जो बच्चे नहीं पढ़ ले फिर भी वह अपने मां बाप का इज्जत करते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते इसलिए मां-बाप को ध्यान में रखकर उनकी इज्जत करें और हो सके तो उनको उतना ही प्यार है जितना उन्होंने आपको बचपन में दिया

आशा करती हूं कि उत्तर आपको अच्छा लगा हो धन्यवाद

kairakhan: babu mujhe jab time milta h tb ate hun
undertalker: babu
undertalker: Ok di
kairakhan: hanan
undertalker: whatttt
kairakhan: kuch nhi
kairakhan: ache se padho
kairakhan: ok
undertalker: ok
kairakhan: gud
Answered by itzlisa91331
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माँ के बिना जीवन संभव नही है| माँ जननी है, असहनीय शारीरिक कष्ट के उपरान्त वह शिशु को जन्म देती है.

व्यक्तिगत स्वार्थो को त्यागकर, अपने कष्टों को भूलकर वह शिशु का पालन-पोषण करती है.

अपनी संतान के सुख के लिए माँ अनेक कष्टों और प्रताड़नाओ को भी सहर्ष स्वीकार कर लेती हैं.

माँ के स्नेह एवं त्याग का पृथ्वी पर दूसरा उदाहरण मिलना सम्भव नहीं है| हमारे शास्त्रों में माँ को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है.

इस संसार में माँ की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती| परिवार में माँ का महत्व सबसे बड़ा है.

घर-परिवार को सम्भालने के साथ माँ अपनी सन्तान का पालन-पोषण भी करती है और उसका प्रत्येग दुःख-दर्द दूर करने के लिए दिन-रात सजग रहती है.

परिवार के अन्य सदस्य अपने-अपने निजी कार्यों में व्यक्त रहते हैं परन्तु माँ सन्तान के लिए समर्पित रहती है.

माँ का सर्वाधिक समय सन्तान की देखभाल में व्यतीत होता है| सन्तान की देखभाल के लिए माँ को रात में बार-बार जागना पड़ता है| परन्तु अधूरी नींद के उपरान्त भी माँ सदैव संतान के प्रति चिंतित रहती है.

सन्तान को संस्कार प्रदान करने में माँ का विशेष योगदान होता है| माँ ही संतान को चलना-बोलना सिखाती है.

आरम्भ में माँ ही संतान के अधिक सम्पर्क में रहती है, माँ के मार्ग-दर्शन में ही संतान का विकास होता है.

महान संत, महा पुरुषों की जीवनी सुनाकर माँ सन्तान में महान व्यक्ति बनने के संस्कार कूट-कूटकर भरती है| वह सन्तान को सामाजिक मर्यादाओं का ज्ञान कराती है और उच्च विचारों का महत्व बताती है.

सन्तान को चरित्रवान, गुणवान बनाने में सर्वाधिक योगदान माँ का होता है| एक और वह सन्तान को लाड़-प्यार से सुरक्षा एवं शक्ति प्रदान करती है, दूसरी और डांट-डपटकर उसे पतन के मार्ग पर जाने से बचाती है.

किसी भी व्यक्ति का चरित्र-निर्माण उसकी माँ की बुद्धिमत्ता पट निर्भर करता है| एक माँ ही किसी भी व्यक्ति की प्राथमिक शिक्षिका होती है.

 

प्रत्येक माँ को अपनी सन्तान सर्वाधिक प्रिय होती है| अपनी सन्तान के लिए माँ सारे संसार से लड़ सकती है, परन्तु संतान के प्रति माँ का अन्धा मोह प्राय: सन्तान के लिए अहितकर सिद्ध होता है.

सन्तान के पालन-पोषण में माँ को लाड़-प्यार के साथ बुद्धिमत्ता की भी आवश्यकता होती है.

अत्यधिक लाड़-प्यार में माँ की सन्तान के प्रति लापरवाही सन्तान को पथभ्रष्ट कर सकती है.

 

माँ का अत्यधिक मोह सन्तान को कामचोर और जिधि बना सकता है| वास्तव में योग्यता कठिन परिश्रम के उपरान्त ही प्राप्त होती है.

एक बुद्धिमान माँ अपनी सन्तान से प्रेम अवश्य करती है, परन्तु उसे योग्य बनाने के लिए उसके प्रति कठोर बनने में कोताही नहीं करती.

लाड़-प्यार के नाम पर सन्तान को अधिक ढील देने वाली माँ को बाद में पशचाताप ही करना पड़ता है.

आधुनिक समाज में माँ को दोहरा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है.

नारी–स्वतंत्रता के नाम पर अधिकांश महिलाएँ विभिन्न श्रेत्रों में नोकरी, व्यवसाय कर रही हैं| उन्हें घर-परिवार की देखभाल के लिए अधिक समय नहीं मिलता परन्तु घर-परिवार की देखभाल नारी को ही करनी पड़ती है.

सुबह परिवार में सबसे पहले जागकर वह घर के काम-काज करती है| दिन में उसे नोकरी, व्यवसाय में खटना पड़ता है और शाम को घर आने पर पुन: परिवार का दायित्व उसके कंधों पर आ जाता है.

इस दोहरे जीवन में स्पष्टतया नारी अथवा माँ को कठिनाई अवश्य होती है, परन्तु वह प्रत्येक परिस्थिती से मुकाबला करते हुए अपनी शक्ति को प्रमाणित करती है.

वास्तव में माँ की आंतरिक शक्ति अतुलनीय है| यद्यपि हमारे पुरष-प्रधान समाज में पुरुषों को अधिक अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु माँ के बिना परिवार की कल्पना नही की जा सकती.

 

दिन में घर से बाहर काम-काज में खटने के बाद भी घर-परिवार का दायित्व संभालने की सामर्थ्य माँ में ही सम्भव है.

एक पुरुष काम-धंधे के लिए कठोर परिश्रम कर सकता है, परन्तु घर-परिवार और विशेषतया बच्चों को सम्भालने की योग्यता पुरुष में नही होती.

हमारे शास्त्रों में सत्य ही कहा गया है कि माँ देवताओं के समान पूजनीय होती है. वास्तव में माँ परिवार में सर्वाधिक सम्मान की अधिकारी है. माँ का महत्व सबसे बड़ा है.


kairakhan: wow aap ka ans bhut he acha h
undertalker: send
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