Hindi, asked by shalinidixit20091983, 6 hours ago

माँ की ममता पर 100 से 120 शब्दों में एक लघु कथा​

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Answered by gursharanjali
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माँ की ममता – एक भावुक कहानी एक छोटे से कसबे में समीर नाम का एक लड़का रहता था। ... समीर की माँ अब बूढी हो चुकीं थीं, और कई दिनों से बीमार भी चल रही थीं, और एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो गयी। समीर के लिए ये बहुत बड़ा आघात था, वह बिलख-बिलख कर रो पड़ा उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब अपनी माँ के बिना वो कैसे जियेगा

Answered by shikhakumari8743
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यह सुनकर रमेश की माँ ने खाने का टिफिन रमेश की ओर आगे बढ़ा दिया, जिसे देखकर रमेश को अब समझते हुए देर ना लगी की वह अपना खाना भूल गया था जिसे माँ ने उसे देने के लिए यहा आई थी.

इसके बाद रमेश की माँ बोली “बेटा भले ही तुम बड़े हो गये हो,फिर बेटे को दिक्कत ना हो इसलिए फोन न करके मैसेज किया लेकिन रमेश अपने काम में बीजी था सो माँ के मैसेज पर ज्यादा ध्यान ना दिया, लेकीनं उसकी माँ बाहर कबसे उसका इंतजार कर रही थी, इस तरह कई घंटे बीत गया और इस बीच कई मैसेज भी किया लेकिन रमेश का कोई उत्तर नही आ रहा था, इस तरह रमेश की माँ को चिंता होने लगी थी.

माँ के लिए 4 कविता Best Maa Kavitaजिसके बाद शहर में आकर रमेश की माँ खुद को एकदम अकेले पाती थी इस तरह उन्हें भी अच्छा नही लगता था लेकिन एक माँ अपने बेटे की हमेसा ख़ुशी ही चाहती है सो धीरे धीरे वह शहर में रहना भी सीख गयी थी लेकिन रमेश और और उसकी पत्नी हमेसा अपनी माँ को समझाते रहते थे की ऐसा मत करो, ये मत करो, मतलब की वे अपने आगे माँ को गाँव की एक तरह से गवार ही समझते थे लेकिन माँ की दिल तो हमेसा से अपने बच्चो के लिए बड़ा ही होता है सो वे सभी बाते चुपचाप सुनकर हां में हा मिलाकर रह जाती थी.एक दिन की बात है सुबह रमेश की पत्नी को ऑफिस जल्दी जाना था सो वह सबकुछ जल्दी से तैयार करके रमेश का खाना पैक करके ऑफिस चली गयी.

फिर इसके बाद रमेश भी जल्दी जल्दी तैयार होकर ऑफिस निकल गया था फिर कुछ समय बाद रमेश की माँ ने देखा की उसका बेटा तो खाने का लंच बॉक्स तो घर पर ही भूल गया है तो माँ ने बिना देर करते हुए फटाफट ऑफिस पहुच गयी और पास में एक कुर्सी पर बैठ गयी क्युकी कम्पनी में बाहर के व्यक्तियों को अंदर जाने के लिए मना था. बड़े शहर में रहने लगे हो, ब्ल्हे ही अच्छे बुरे की ज्यादा समझ आ गयी हो, लेकिन मेरे लिए आज भी मेरे कलेजे का टुकड़ा ही हो जिसे मैंने बचपन से लेकर आजतक पालते हुए आ रही हो,”

रमेश को अब आँखे खुल चुकी थी की आखिर उसकी माँ उसकी परवाह करते हुए खाना लेकर आई थी जिसे वह बिना सोचे समझे अपनी माँ को ही डांटे जा रहा था, अब वह अपने किये हुए पर बहुत पछतावा हो रहा था जिसे देखकर माँ ने उसे एकबार फिर से अपने गले लगा लिया, और इस तरह रमेश अब आगे से खुद को माँ के लिए बदल लिया था, अब उनकी पहले से ज्यादा अच्छे से देखभाल करने लगा था जिसके बाद माँ को अब शहर भी अच्छा लगने लगा था क्युकी अब उसका बेटा फिर से उसे मिल गया था.

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