"मैं किसी से कम नहीं हूँ, यह भाव प्रारम्भ से ही उनमें विद्यमान रहा। सच्चे अर्थों में वह
'कर्मयोगी' रहे। शारीरिक दृष्टि से छोटा नहीं, अप्रत्याशित बाधा होते हुए भी मन कर्म में निरंतर रत
रहा और नव-नव प्रकाश विकीर्ण होता रहा।"
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मैं किसी से कम नहीं हूँ, यह भाव प्रारम्भ से ही उनमें विद्यमान रहा। सच्चे अर्थों में वह 'कर्मयोगी' रहे। शारीरिक दृष्टि से छोटा नहीं, अप्रत्याशित बाधा होते हुए भी मन कर्म में निरंतर रत रहा और नव-नव प्रकाश विकीर्ण होता रहा।".
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