Hindi, asked by bharat9255, 11 months ago

में क्षितिज़े भरकुटी पर घिर धूमिल
चिंता का भार बनी अविरल
रज कण पर जल कण हो बरसी,
नव जीवन,अंकुर बन निकली
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिहन न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आँगन की जंग में

Answers

Answered by princesingh94
0

Kshitij ka matlab hota hai jaha Akash aur Dharti Milta party 22 Mile chinthaka Bhar Bani aur Aviral Chinta ka bharwa Raha Hai Raja kahan par ho Jeevan Ankur aur Nikal Gaya

Answered by bhatiamona
0

मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल,

चिंता का भार, बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी

नवजीवन-अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,

पद-चिह्न न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की जग में

सुख की सिहरन हो अंत खिली!

संदर्भ : यह पंक्तियां महादेवी वर्मा की कविता ‘मैं नीर भरी’ की हैं। उन्होंने इस कविता में एक लड़की की जिंदगी के सफर के बारे में बताया है।

भावार्थ : लड़की के जीवन की डोर औरों के हाथों में सौंप दी जाती है, पैदा होते ही लोग दुखी हो जाते है और लड़के की दुआ करते है। शादी के दहेज़ की चिंता होती माँ-बाप को डर, ज्यादा पढ़ लिख गई तो डर, पति ना रहे तो डर, लड़की की ज़िन्दगी में परेशानियां चली रहती है. लड़की कहती है यही इतिहास चला आ रहा ना मेरा कोई है, ना मेरा कोई अपना होगा, ना कभी परिचय होगा और ऐसा ही एक दिन मिट जाना है.

Similar questions